हमारे देश में छोटे और मझोले किसानों की संख्या लगभग 86 प्रतिशत है। ये ऐसे किसान हैं जिनके पास पांच एकड़ से भी कम जमीन है। इन किसानों को प्रायः कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से जूझना पड़ता है। ऐसे में पारंपरिक खेती करने वाले ऐसे काफी किसानों को खेती के जरिये नुकसान उठाना पड़ता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए कृषि वैज्ञानिक किसानों को एकीकृत कृषि यानि इंटीग्रेटेड फार्मिंग करने की सलाह दे रहे हैं। एकीकृत खेती के अंतर्गत किसान खेती के साथ ही उससे संबंधित दूसरे काम भी करते हैं। यानी फसल उत्पादन, बागवानी कृषि-वानिकी, पशुपालन (दुग्ध उत्पादन, मुर्गी पालन, बत्तख पालन), मधुमक्खी पालन, मछली पालन व मशरूम उत्पादन इत्यादि। इससे किसानों की आय चार से पांच गुना तक बढ़ सकती है। इस मॉडल से किसान सालभर आय अर्जित कर सकते हैं, जिससे छोटे और मझोले किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है। आसान भाषा में कहें तो एकीकृत कृषि में खेती के सभी घटकों को शामिल किया जाता है। जिससे किसानों को सालभर आमदनी होती रहती है।
एकीकृत कृषि प्रणाली के अंतर्गत किसानों को खासतौर पर छोटे काश्तकारों को अपने और बाजार के लिए कई तरह की वस्तुओं के उत्पादन का पर्याप्त अवसर प्राप्त होता है। साथ ही कृषि के क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ाने, परिवार के लिए सन्तुलित पौष्टिक आहार जुटाने, पूरे साल आय और रोजगार का इंतजाम करने तथा मौसम और बाजार सम्बन्धी जोखिम कम करने में भी मदद मिलती है। इस तकनीक मुख्य उद्देश्य ये है कि किसान अपने मुख्य फसल के साथ-साथ मुर्गी पालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन, रेशम, सब्जी-फल, मशरूम की खेती एक साथ एक ही जगह पर कर सकते हैं।
एकीकृत कृषि प्रणाली में पानी की उपलब्धता होना अति आवश्यक है। ऐसे में पानी के लिए खेत की जमीन में ही एक तालाब खोदें, क्योंकि उससे कई लाभ मिलते हैं। जैसे तालाब से फसलों कि सिंचाई की जा सकती है, उसमें मछली पालन और बत्तख पालन आदि किया जा सकता है। इसके लिए एक अच्छे आदर्श मॉडल में पानी की पर्याप्त मात्रा का होना जरूरी है। इसके लिए आप पानी का स्रोत बना सकते हैं। खेत के बीच में या अन्य जगह अपनी जरूरत के हिसाब से एक छोटा तालाब बना सकते हैं। तालाब के चारों तरफ लताओं वाले पौधे लगा सकते हैं, जिनसे उनकी पानी की आवश्यकता पूरी की जा सके।
एकीकृत कृषि प्रणाली में अमरूद, लीची, आम, सब्जियां आदि के पेड़ जगह के हिसाब से लगाए जा सकते हैं और खेत के ही पास में ही गौशाला बनाई का सकती है। फॉर्महाउस में मुर्गियों के साथ-साथ बत्तखों को भी पाला जा सकता है। इस तरह से समझ सकते हैं कि ये सभी एक दूसरे के पूरक हो जाते है। किसान सब्जियां उगाएंगे, या फल उगाएंगे तो उसके गिरे हुए पत्ते, खराब सब्जियां, खर-पतवार आदि गाय बकरियों का आहार बनेगा। तो वहीं गाय के गोबर से जमीन को और उपजाऊ बनाया जा सकता है। ठीक इसी तरह मुर्गी पालन से मीट के साथ साथ अंडो की भी प्राप्ति होती है। मछलियों के लिए चारे का इंतजाम भी इसी मॉडल से हो जाता है। इससे मांस, अंडे उपलब्ध होंगे तो वहीं तालाब के मेड़ों में फल, सब्जियाँ और फल उगाए जा सकते हैं।