कृषि पिटारा

किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प, नवंबर में करें जीरे की बुवाई

नई दिल्ली: उत्तर भारत के किसानों के लिए नवंबर का महीना जीरे की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय है। जीरे की खेती एक लाभदायक खेती है, क्योंकि जीरे की कीमतें सालों भर अच्छी रहती हैं और इसकी मांग भी हमेशा रहती है। जीरे की खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी अच्छी होती है। जीरे की बुवाई के लिए किसानों को इसकी उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए, ताकि अच्छी उपज प्राप्त हो सके।

उत्तर भारत की मिट्टी व जलवायु को ध्यान में रखकर आप जीरे की उन्नत क़िस्मों आर जेड-19, आर जेड-209, जीसी-4 और आर जेड-223 की बुवाई कर सकते हैं। इन किस्मों की उपज क्षमता अधिक होती है और ये रोगों व कीटों के प्रति भी अधिक प्रतिरोधी होती हैं। इन किस्मों की उपज प्रति हेक्टेयर 7 से 9 क्विंटल तक होती है। जीरे की कीमतें 33 से 43 हजार रुपये प्रति क्विंटल के बीच रहती हैं।

जीरे की बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार करना चाहिए। खेत को जुताई करने के बाद उसमें खाद और उर्वरक डालना चाहिए। जीरे की बुवाई पंक्ति में करनी चाहिए। बीजों को 1-2 इंच की गहराई में बोना चाहिए। बीजों की बुवाई के बाद जीरे की फसल को नियमित रूप से पानी देना चाहिए। जीरे की फसल जब पककर तैयार हो जाए, तो उसकी कटाई करनी चाहिए। जीरे की कटाई के लिए एक स्ट्रॉबेलर कटाई मशीन का उपयोग किया जाता है। कटाई के बाद जीरे की फसल को थ्रेशर में थ्रेस किया जाता है। थ्रेसिंग के बाद जीरे के बीजों को धूप में सुखाया जाता है।

जीरे की खेती एक लाभदायक खेती है। जीरे की कीमतें सालों भर अच्छी रहती हैं और इसकी मांग भी हमेशा रहती है। जीरे की खेती से किसान अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं। नवंबर में जीरे की बुवाई करना किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प है। इसकी खेती की तकनीक भी सरल है। जीरे की खेती में लागत निकालने के बाद किसानों को कम से कम ढ़ाई से तीन लाख रुपये का फायदा हो जाता है। हालांकि, यह लाभ मिट्टी की गुणवत्ता, जलवायु, बुवाई की विधि और जीरे के बाजार मूल्य पर निर्भर करता है। जीरे की खेती करके किसान न केवल अच्छी कमाई कर सकते हैं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में भी योगदान दे सकते हैं।

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