(नई दिल्ली) अभी हाल ही में देश के किसानों का विरोध आंदोलन का रूप ले कर संसद तक पहुँचा था. इस आंदोलन ने किसानों की समस्या को लेकर कई बहसों को नए सिरे से जन्म दिया. जैसे क्या यह आंदोलन राजनीति प्रेरित था या यह कि क्या वाकई देश के किसान इतने समस्याग्रस्त हैं कि उन्हें बार-बार आंदोलन छेड़ने की ज़रुरत पड़ रही है? क्या आम किसान इतना मजबूर हो चुका है कि उसके पास खेती-किसानी के अलावा किसी अन्य विकल्प की तलाश करनी पड़ रही है??
देश के गन्ना किसानों को उनकी उपज का सही मोल न मिलने की खबरें अभी मिल ही रही हैं – इसी बीच आलू उत्पादकों को भी उनकी फसल घाटे का सौदा साबित होने की ओर है. बतौर उपभोक्ता हम भले ही 20 से 25 रूपए प्रति किलो के भाव में आलू खरीद रहे हों, मगर सच तो ये है कि किसानों को लागत वसूल पाना भी दूभर हो गया है. नया आलू दिल्ली के आजादपुर मंडी में 6.50 से 10 रुपये प्रति किलो के भाव बिक रहा है, जबकि पुराने आलू का भाव घटकर 2 से 7 रुपये प्रति किलो पर पहुँच गया है. इससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. स्थिति यहीं तक ख़राब नहीं है कोल्ड स्टोरेज में रखे गये आलू के भाव घट कर 2 से 7 रुपये प्रति किलो पर आ गये हैं.
किसानों की इस समस्या के बारे पूछे जाने पर दिल्ली की आजादपुर मंडी के पोटेटो ऐंड अनियन मर्चेंट एसोसिएशन (पोमा) के महासचिव राजेंद्र शर्मा ने बताया कि, “पंजाब और हिमाचल के बाद उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद और संभल से भी नए आलू की आवक शुरू हो गई है तथा आगरा से पुराना आलू कोल्ड स्टोर का आ रहा है. बुधवार को मंडी में 125 से 130 ट्रक आलू की आवक हुई तथा पंजाब के नए आलू का भाव 325 से 425 रुपये प्रति 50 किलो और उत्तर प्रदेश के नए आलू का भाव 400 से 500 रुपये प्रति 50 किलो रहा. उत्तर प्रदेश के कोल्ड स्टोर के आलू का भाव घटकर 100 से 350 रुपये प्रति 50 किलो रह गया। महीनेभर में ही आलू की कीमतों में 400 से 500 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आ चुका है.”
उन्होंने यह भी कहा कि, “पंजाब के होशियापूर और हिमाचल के उना से नए आलू की आवक हो रही है, आगामी दिनों में पंजाब के जालंधर और होशियारपुर से नए आलू की आवक बढ़ेगी, साथ ही हरियाणा के साहबाद से भी नया आलू आयेगा. उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद और संभल से तो आवक बढ़ेगी ही साथ ही हापुड़, मेरठ और आगरा से भी नए आलू की आवक बढ़ेगी. दिल्ली में इस समय आलू की दैनिक आवक करीब 125 से 130 ट्रक की हो रही है, इसमें 50 से 55 ट्रक पुराने आलू के आ रहे हैं.”
एक ओर सरकार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य और e-नाम के जरिये उनके हितों की रक्षा की बात कर रही है वहीं, दूसरी ओर ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया’ की स्थिति में देश के अन्नदाता खेती को घाटे का सौदा मानने को विवश हैं.