कृषि पिटारा

अच्छी पैदावार के लिए अश्वगंधा की खेती के दौरान इन बातों का रखें ध्यान

नई दिल्ली: पिछले कुछ समय में कृषि को लेकर किसानों की मनोवृति में व्यापक बदलाव आया है। अब काफी किसान कृषि को उसके परंपरागत रूप में नहीं बल्कि एक व्यवसाय के रूप में देखने लगे हैं। औषधीय पौधों की खेती से उन्हें बढ़िया मुनाफा मिल रहा है। इससे उन्हें लीक से हटकर कुछ नया करने की प्रेरणा मिल रही है। औषधीय पौधों की खेती करने वाले किसान अब फसल उगाने के साथ-साथ बाज़ार की भी समझ रखने लगे हैं, यानी उनके द्वारा उगाई गई फसल को किस प्रकार बढ़िया बाज़ार उपलब्ध होगा? जाहिर तौर पर इस प्रकार योजनाबद्ध तरीके से की जाने वाली खेती से उन्हें बढ़िया आमदनी प्राप्त हो रही है।

औषधीय फसलों की खेती करने वाले किसानों के पास अश्वगंधा की खेती कर अच्छा लाभ कमाने का भी विकल्प है। इसकी खेती के लिए बढ़िया जल निकास वाली रेतली दोमट या हल्की लाल मिट्टी उपयुक्त होती है। अगर आप अश्वगंधा की खेती करना चाहते हैं तो उस भूमि का चुनाव करें जिसका पीएच 7.5 से 8.0 के बीच हो। नमी बरकरार रखने वाली और जल सोखने वाली मिट्टी में  अश्वगंधा की खेती नहीं की जा सकती है।

राज विजय अश्वगंधा – 100 व नागोरी अश्वगंधा की कुछ प्रसिद्ध किस्में हैं, लेकिन बेहतर होगा कि आप किसी भी किस्म का चुनाव अपने क्षेत्र के अनुसार करें। अश्वगंधा की खेती के लिए भुरभुरी और समतल भूमि की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत की 2-3 बार जुताई करें और बारिश के पहले खेत की डिस्क या तवियों से भी जोताई करें। खेत को अप्रैल से मई के महीने में तैयार करें। रोपाई से पहले खेत में  10-20 टन रूड़ी की खाद, यूरिया 15 किलो और 15 किलो फॉस्फोरस मिट्टी को पोषित करने के लिए ज़रूर डालें।

जून-जुलाई के महीने में नर्सरी तैयार कर लें। बुआई करते समय पंक्ति में 20-25 सैं.मी. का फासला और पौधों में 10 सैं.मी. का फासला रखें। बीजों को बोते समय उन्हें 1-3 सैं.मी. गहराई में बोएँ। जहाँ तक बुआई के लिए बीज की मात्रा का सवाल है तो अच्छी किस्मों के लिए प्रति एकड़ में 4-5 किलो बीजों का प्रयोग करें। बुआई के बाद फसल की पहली सिंचाई अंकुरण से 30-35 दिनों के बाद और दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के 60-70 दिनों के बाद करें।

अश्वगंधा का पौधा 160 से 180 दिनों में पैदावार देना  शुरू कर देता है। इसकी कटाई सूखे मौसम में करें, जब पत्ते सूख रहे हों और फल लाल संतरी रंग के हो जाएँ। अश्वगंधा की कटाई हाथों से जड़ों को उखाड़कर या मशीन द्वारा बिना जड़ों को नुकसान पहुंचाए की जाती है। कटाई के बाद पौधे से जड़ों को अलग करें और इन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में जैसे 8-10 सैं.मी. काट दें और फिर हवा में सुखाएं। कटाई के बाद छंटाई की जाती है। जड़ों के टुकड़ों को बेचने के लिए टीन के बक्सों में स्टोर कर लिया जाता है। आपको बता दें कि ये जड़ें जितनी लंबी होंगी उनका मुल्य उतना ही ज्यादा होगा।

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