नई दिल्ली: ग्वार एक प्राचीन, बहुद्देशीय व गहरे जडतंत्र वाली सूखा-प्रतिरोधी दलहनी फसल हैं। इसकी खेती असिंचित व बहुत कम वर्षा वाले क्षेत्रो में सफलतापूर्वक की जा सकती है। ग्वार की खेती से भूमि में प्रति हेक्टेयर की दर से 25-30 किलोग्राम नत्रजन उपलब्ध होती है। ग्वार मुख्य रूप से बीज, सब्जी, हरा चारा, हरी खाद और ग्वार गम के रूप मे उपयोग होता है। ग्वार के लिए नम एवं गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती वर्षा ऋतु में की जा सकती है। फसल की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिए 25-30° तापमान अनुकूल होता है। ग्वार के विकास काल के दौरान लगभग 500 से 600 मि.मी. वर्षा होना अच्छी पैदावार पाने की संभावना को बढ़ा देती है। इस फसल के पकने के दौरान साफ मौसम तथा 60 से 65 प्रतिशत आर्द्रता का होना भी आवश्यक है। ग्वार की फसल के पकने के समय अधिक वर्षा हानिकारक हानिकारक होती है।
ग्वार की खेती वैसे तो प्रत्येक प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन अधिक पैदावार के लिए समतल चिकनी उपजाऊ मिट्टी तथा उत्तम जल निकास की भूमि सर्वोतम होती है। इसकी खेती के लिए भूमि की तैयारी रबी की फसल काटने के पश्चात एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। उसके बाद 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर खेत को खरपतवार रहित करने के उपरान्त पाटा चलाकर खेत को समतल कर लें।
ग्वार की बुआई का उपयुक्त समय जुलाई का प्रथम सप्ताह है। जहाँ सिंचाई के साधन उपलब्ध हों वहाँ पर ग्वार की फसल की बोनी जून के अन्तिम सप्ताह में भी की जा सकती है। अगर आप बीज उत्पादन के लिए ग्वार की खेती करना चाहते हैं तो 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज का इस्तेमाल करें। वहीं सब्जी उत्पादन के लिए 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर व चारा उत्पादन के लिए 40 से 45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बीज का इस्तेमाल करें।
जहाँ तक बात है फसल की सिंचाई की तो फसल में फूल आने एवं फलियाँ बनने की अवस्था में अवर्षा या वर्षा का अन्तराल अधिक होने पर एक सिंचाई करने से उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है। किसान मित्रों, ग्वार की फसल खेत में भरे पानी को सहन नही कर पाती है। इसलिए अधिक वर्षा होने पर जल निकासी का उचित प्रबन्धन ज़रूर करें।
जब ग्वार के पौधों की पत्तियाँ सूखकर गिरने लगें एवं 50 प्रतिशत फलियाँ एकदम सूखकर भूरी हो जाएँ तब फसल की कटाई करना सर्वोत्तम होता है। कटाई के बाद फसल को धूप मे सुखाकर श्रमिको या थ्रेशर मशीन द्वारा फसल की मड़ाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद दानों को अच्छी तरह से धूप में सुखाकर उचित भण्डारण करना चाहिए। अगर आप सब्जी के लिए ग्वार की खेती कर रहे हैं तो उगाई गई फसल से समय-समय पर लम्बी, मुलायम एवं अधपकी फलियाँ तोडते रहें। वहीं चारे के लिए उगायी गई फसल को फूल आने एवं 50 प्रतिशत फली बनने की अवस्था पर काट लेना चाहिए। इस अवस्था से देरी होने पर फसल के तनों मे लिग्निन का उत्पादन होने लगता है, जिससे हरे चारे की पाचकता एवं पौष्टिकता काफी कम हो जाती है।