नई दिल्ली: देश के कई राज्यों में इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है। तामपान में गिरावट का दौर जारी है। इसके कारण कोहरा और पाला का असर भी दिखाई देने लगा है। जब तापमान में गिरावट आती है और मौसम बदतला है तो सबसे पहले इसका असर खेती पर पड़ता है। फल, फसल और सब्जियों को इससे नुकसान होता है। खास कर पाला सब्जियों का दुश्मन होता है। दिसंबर और जनवरी में महीने में फसलों पर सबसे अधिक इसका प्रकोप होता है। इसके प्रभाव से फसल सड़कर बर्बाद हो जाती है। ऐसे में किसानों को यह जानना ज़रूरी है कि किस प्रकार से किसान कुछ सावधानियां बरतकर अपनी फसल को नुकसान से बचा सकते हैं।
पाला का सबसे अधिक असर आलू, गेहूं, जौ, सरसों, जीरा, धनिया, चना, मटर और गन्ने की खेती में होता है। सरसो के अलावा इन फसलों पर पाला मारने से 10 से 20 फीसदी नुकसान होता है जबकि सरसो की फसल पर पाला मारने से किसानों को 30 से 40 फीसदी तक का नुकसान होता है। वहीं सब्जियों में पाला मारने से सबसे अधिक नुकसान होता है। सब्जियों में 40-60 फीसदी तक नुकसान होता है। पाला का सबसे अधिक असर सरसों और आलू की नई रोपी गई फसलों को होता है। पाला मारने से इन दोनों में झुलसा रोग का प्रकोप हो जाता है जिससे फसले सड़कर सूख जाती है।
उपज और गुणवत्ता होती है प्रभावित
फसलों और सब्जियों में पाला मारने से उनकी ऊपज और गुणवत्ता दोनों ही प्रभावित होती है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक पाला मारने से पौधौं की पत्तियाँ झुलस जाती हैं और टहनियाँ नष्ट हो जाती हैं। इसके कारण पौधौं में बीमारी का प्रकोप हो जाता है। साथ ही फसलों के फूल सिकुड़ कर गिरने लगते हैं। फूल झड़ जाने के कारण पैदावार कम हो जाती है और कई बार फसल भी कमजोर होकर मर जाती है। पाला मारने के कारण पत्तों और तनों तक धूप और हवा सही से नहीं पहुंच पाती है इसलिए पत्ते सड़ने लगते हैं। जिससे फसल के उत्पादन पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। इससे कभी-कभी पूरी फसल फसल नष्ट हो जाती है।
कुछ स्थानीय कृषि विशेषज्ञ फसलों को पाले से बचाने के लिए खेत के चारो तरफ धुआँ करने की सलाह देते हैं। लेकिन आज प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए इसे नजरंदाज करना चाहिए। बजाय इसके किसान अपने फसलों को पाला से बचाने के लिए दवाओं का छिड़काव कर सकते हैं। पाला पड़ने के समय किसान गंधंक का तेजाब, यूरिया और घुलनशील सल्फर को पानी में घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव कर सकते हैं। इसके लिए बताई गई निर्धारित मात्रा का ही घोल का इस्तेमाल करें। एक लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इसका असर फसल पर एक सप्ताह तक रहता है। अगर शीतलहर का प्रकोप लगातार बना रहता है तो 15-15 दिनों के अंदर पर इसका छिड़काव करते रहना चाहिए।