नई दिल्ली:हमारे देश में धान की रोपाई लगभग 400 लाख हेक्टेयर में की जाती है। फिलहाल इसमें से 238 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की रोपाई हो चुकी है। ऐसे में अब इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि यह फसल कीट-पतंगों व बीमारियों से सुरक्षित रहे। इसके लिए उनसे निपटने के उपाय ढूंढे जाएं। इसलिए, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा ने किसानों की मदद के लिए एक सलाह जारी की है। इसमें किसानों को बताया गया है कि धान की फसल में अगर पौधों का रंग पीला पड़ रहा हो और पौधे की ऊपरी पत्तियां पीली हो रही हैं तो उन्हें क्या करना चाहिए। ऐसे लक्षण दिखाई देने पर जिंक सल्फेट (हेप्टा हाइड्रेट 21%) की 6.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 300 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करने से समस्या का समाधान हो जाता है।
कृषि वैज्ञानिकों ने यह भी सलाह दी है कि किसानों को बाजरा, मक्का, सोयाबीन और सब्जियों में खरपतवार के नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई का कार्य समय पर शुरू कर देना चाहिए। वैज्ञानिकों के अनुसार जिन लोगों ने इन फसलों की अगेती की है, उनमें खरपतवार यानी घास उगने की संभावना होगी। उसे समय पर निकालना आवश्यक है ताकि नुकसान न हो। वैज्ञानिकों ने किसानों को आगाह किया है कि वे अपनी सभी फसलों में सफेद मक्खी और रस चूसक कीटों की नियमित निगरानी करें।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार कुछ फसलों की बुवाई के लिए अब उचित समय है, जैसे चारे के लिए ज्वार की बुवाई करने के लिए यह उपयुक्त समय है। इसलिए किसान भाई पूसा चरी-9, पूसा चरी-6 या अन्य सकंर किस्मों की बुवाई कर सकते हैं। इसके लिए बीज की मात्रा 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखना चाहिए। इसके अलावा, जो लोग टमाटर, हरी मिर्च, बैंगन और अगेती फूलगोभी की पौध तैयार कर रहे हैं, उन्हें मौसम को ध्यान में रखते हुए रोपाई मेंडों (ऊथली क्यारियों) पर करना चाहिए और जल निकास का उचित प्रबंध रखना चाहिए। कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क रखने और सही जानकारी लेने के बाद ही दवाइयों का प्रयोग करना चाहिए। इस समय वर्षाकालीन प्याज की पौध की रोपाई भी की जा सकती है। साथ ही, स्वीटकॉर्न और बेबीकॉर्न की बुवाई के लिए भी यह समय उपयुक्त है। ग्वार, मूली, लोबिया, भिंडी, सेम, पालक और चौलाई की भी बुवाई करने के लिए यह समय उपयुक्त है। इसके लिए बीज को किसी प्रमाणित स्रोत से खरीदना चाहिए और पानी निकासी का ध्यान रखना चाहिए। कद्दूवर्गीय फसलों में कीड़ों और बीमारियों की निरंतर निगरानी रखनी चाहिए।