नई दिल्ली: अदरक की खेती लिए गर्म तथा नमीयुक्त जलवायु उपुक्त होती है। कम नमी तथा 32० सैल्सियस से अधिक तापमान वाले क्षेत्र अदरक की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। इसकी खेती 5.5-8.5 पीएच मान वाली रेतीली दोमट मिट्टी में बढ़िया उपज देती है। भूमि का चुनाव, जलवायु तथा विभिन्न रोगों व कीटों से फसल की सुरक्षा इत्यादि बिन्दुओं पर ध्यान रखकर इस फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
अदरक को रोगों से, विशेषकर गट्ठी सड़न से बचाने के लिए हर साल खेत की अदला बदली करते रहें तथा पांच वर्षीय फसल चक्र अपनाएँ। इसकी बिजाई अप्रैल-मई महीने तक पूरी कर लें। देरी से की गयी बिजाई फसल की उपज पर विपरीत प्रभाव डालती है। जहाँ तक बीज की मात्रा का सवाल है तो प्रति हेक्टेयर 18-22 क्विंटल बीज गट्ठिओं का उपयोग करें।
इसके अलावा अदरक की बुआई 30×20 सेंटीमीटर के अंतर पर करें। इसकी खेती के दौरान गोबर की खाद, फास्फोरस और पोटाश को खेत तैयार करते समय डालें। नाइट्रोजन की तीन बराबर मात्राएँ, पहली खेत तैयार करते समय, दूसरी एक महीने बाद तथा तीसरी उसके एक महीने बाद अवश्य डालें।
अदरक एक लम्बी अवधि की फसल है। इसे छाया की ज़रूरत होती है। इसलिए अधिक लाभ कमाने के लिए इसके साथ दूसरी फसल को अंतर फसल के रूप में लगाना चाहिए। अदरक के साथ आप मक्की, भिंडी, अरबी, बाथू तथा मिर्च की फसल लगा सकते हैं। इससे अदरक की फसल को इन फसलों की आंशिक छाया का भी लाभ मिलेगा और आपको अतिरिक्त मुनाफा भी होगा।
अदरक की फसल को कम से कम दो बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। ध्यान रखें कि निराई-गुड़ाई के दौरान अदरक की गठ्ठियों को कोई नुक्सान नहीं पहुँचे। यदि आप इन तमाम बातों का ध्यान रखेंगे तो 7 से 9 महीनों में अदरक की फसल तैयार हो जाएगी। अगर आप अदरक का भंडारण करना चाहते हैं तो इसके लिए रोगमुक्त, मोटी तथा फूली हुई गठ्ठियों का चुनाव करें।