नई दिल्ली: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने बताया है कि कृषि क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए चल रहे अनुसंधान को किसानों तक पहुंचाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) को मजबूत किया जाएगा। फिलहाल KVK में स्टाफ की कमी के समाधान की कोशिश हो रही है, लेकिन आने वाले एक-दो महीने के अंदर उनकी संख्या में 100% वृद्धि होगी। किसी भी श्रेणी का कोई भी पद खाली नहीं रहेगा। इससे केवीके की क्षमता में वृद्धि होगी और किसानों तक हमारी बात आसानी से पहुंचेगी। KVK का व्यापक नेटवर्क है। हमने पिछले एक-दो महीने में कई बैठकें की हैं ताकि इसे बेहतर बनाने के बारे में चिंतन-मंथन किया जा सके। यह पहले से बेहतर काम करने के लिए सुधार किया जाएगा। सबसे पहले, स्टाफ की कमी को पूरा किया जाएगा।
डॉ. पाठक ने सोमवार को दिल्ली में स्थित नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज में पत्रकारों से बातचीत की। ICAR वर्तमान में अपना 95वां स्थापना दिवस मना रहा है जिसे “टेक्नोलॉजी डे” के रूप में मनाया जा रहा है। डॉ. पाठक ने कहा कि हमारे पास 113 संस्थान हैं, जिनमें विकसित किए गए उत्पादों का प्रदर्शन हो रहा है और जहां कमियां हैं उन पर विचार-विमर्श हो रहा है। इसे सुधारकर हम आगे बढ़ सकते हैं। डॉ. पाठक ने कहा कि पिछले छह महीने में ही हमने कई संस्थानों के खाली पड़े निदेशकों और विभाग प्रमुखों के पदों को भर दिया है।
ICAR के डीजी डॉ. पाठक ने बताया कि हमारी चार डीम्ड यूनिवर्सिटी और तीन सेंट्रल यूनिवर्सिटी हैं। वर्तमान में, हम चार डीम्ड यूनिवर्सिटी को ग्लोबल यूनिवर्सिटी बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। आने वाले दिनों में, 16 और जगह-जगह पर यूजी और पीजी की डिग्री प्राप्त की जा सकेगी। जहां पढ़ाई के साथ-साथ रिसर्च का काम होता है, वहां परिणाम अच्छे आते हैं। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भी भूमिका अहम है। जब तक प्राइवेट, पब्लिक और किसानों की पार्टनरशिप नहीं होगी, तब तक समस्याओं का समाधान संभव नहीं होगा। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन कृषि क्षेत्र के लिए बड़ी चुनौती है, लेकिन हम कृषि वैज्ञानिक क्लाइमेट रेजिलिएंट और रोगरोधी फसलों की किस्में विकसित करके उससे किसानों को बचाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। हमारे वैज्ञानिक म्यांमार के कृषि क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं और अफ्रीकी देशों में हम मिलेट की खेती को बढ़ा रहे हैं। हम “सीड विदाउट बॉर्डर” नामक एक प्रोग्राम बना रहे हैं, जिसके माध्यम से एक दूसरे के यहां धान की नई किसी भी आने वाली किस्म को भारत, बांगलादेश और नेपाल में एक साथ उपयोग किया जा सकेगा। हम इसे दूसरी फसलों तक भी बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। ICAR ने कुल 6000 फसल वैराइटी विकसित की है, जिनमें से 1888 जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं।
इस अवसर पर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) पुसा के डायरेक्टर डॉ. अशोक कुमार सिंह ने कहा है कि अफगानिस्तान में “अफगानिस्तान नेशनल एग्रीकल्चरल साइंस एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी” (ANASTU) की स्थापना हुई है। पुसा उसे सहायता दे रहा है। इसके साथ ही, वे ज्वाइंट डिग्री प्रोग्राम की शुरुआत की है। उन्होंने पुसा बासमती 1885, पुसा बासमती 1886 और पुसा बासमती 1847 के बारे में जानकारी दी। इससे एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा।