दिल्ली: आंवले से विभिन्न प्रकार की दवाइयाँ तैयार की जाती हैं। तमाम औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण बाज़ार में आँवला की भरपूर मांग है। भारत में उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश आँवला के मुख्य उत्पादक राज्य हैं। यदि आप आँवला की खेती करना चाहते हैं तो आपको इससे जुड़ी कुछ प्रमुख बातों के बारे में ज़रूर जानना चाहिए।
भारी या बंजर भूमि को छोड़कर आँवला की खेती कई प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है। लेकिन बढ़िया जल निकास वाली और उपजाऊ-दोमट मिट्टी में आँवले की खेती अच्छी पैदावार देती है। जहाँ तक बात है मिट्टी की गुणवत्ता की तो इसकी खेती के लिए पीएच मान 6.5 से 9.5 के बीच होना चाहिए।
आँवला की खेती के लिए मिट्टी की अच्छी तरह से जुताई करें। मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बनाने के लिए बिजाई से पहले ज़मीन की जुताई करें और मिट्टी में रूड़ी की खाद मिलाएँ।
अगर बात करें आँवले की कुछ प्रमुख क़िस्मों की तो ये हैं बनारसी, कृष्णा, NA-6, NA-7, NA-8, NA-9, कंचन, और चकिया इत्यादि।
किसान मित्रों, आँवला की खेती आमतौर पर जुलाई से सितंबर के महीने के बीच की जाती है। आप मई से जून महीने के बीच कलियों वाले पौधों को 4.5×4.5 मीटर के फासले पर लगाएँ। अच्छी पैदावार के लिए प्रति एकड़ में 200 ग्राम बीज का प्रयोग करें।
फसल को मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों व कीटों से बचाने के लिए और अच्छे अंकुरण के लिए बीजों को जिबरैलिक एसिड 200 पी पी एम से उपचारित करें। रासायनिक उपचार के बाद बीजों को हवा में ज़रूर सुखाएँ।
जहाँ तक बात है सिंचाई की तो गर्मियों में 15 दिनों के अंतराल पर और सर्दियों में अक्तूबर दिसंबर के महीने में हर रोज़ चपला सिंचाई द्वारा प्रति वृक्ष 25 से 30 लीटर पानी डालें। मानसून के समय में आँवले के पौधों को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। हाँ, फूल निकलने के समय सिंचाई बिलकुल भी ना करें।
किसान मित्रों, बिजाई से 7-8 साल बाद आँवला के पौधे पैदावार देना शुरू कर देते हैं। जब आँवला के फल हरे रंग के हो जाते हैं तो इनमें विटामिन सी की मात्रा अधिक होती है। इसे देखते हुए फरवरी के महीने में फल की तुड़ाई करना बेहतर होता है। फल की तुड़ाई के लिए आँवले के वृक्ष को ज़ोर-ज़ोर से झकझोरा जाता है।
तुड़ाई के बाद अलग-अलग गुणवत्ता के अनुसार फलों की छंटाई करनी चाहिए। उसके बाद फलों को बांस की टोकरी और लकड़ी के बक्सों में पैक करना होता है। फलों को खराब होने से बचाने के लिए अच्छी तरह से पैकिंग करनी चाहिए। फलों की तुड़ाई से पहले ही अगर ख़रीदार की तलाश कर ली जाए तो फल की अच्छी गुणवत्ता के कारण विक्रेता को अच्छा भाव मिलता है।