नई दिल्ली: भारतीय कृषि में एक नई क्रांति का समय आया है, जिसमें परंपरागत खेती को छोड़कर आधुनिक तकनीकों का प्रयोग हो रहा है। पहले खेती सिर्फ परंपरागत तरीकों से होती थी, लेकिन अब हाइड्रोपोनिक और एयरोपोनिक जैसी नई तकनीकों का प्रयोग हो रहा है, जो खेती को अधिक उत्पादक बना रही हैं। इसमें से एक नई तकनीक है – एक्वापोनिक फार्मिंग, जिसे भारतीय किसान अब अपना रहे हैं।
एक्वापोनिक फार्मिंग में, हाइड्रोपोनिक्स और एक्वाकल्चर को मिलाकर एक नई कृषि प्रणाली बनाई गई है। इस प्रणाली में, एक ओर टैंक में मछलियों को पाला जाता है, जबकि दूसरी ओर हाइड्रोपोनिक फार्मिंग के तहत पौधों की खेती की जाती है। मछलियों के मल मिश्रित पानी को हाइड्रोपोनिक सिस्टम में पहुंचाया जाता है, जिससे पौधों के लिए न्यूट्रिशन बनता है।
एक्वापोनिक फार्मिंग में, मछलियों का मल पौधों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है। जब मछलियां खाना खाती हैं, तो उनका मल पौधों के लिए जरूरी न्यूट्रिएंट्स में बदल जाता है। इस प्रकार, एक समतुल्य पारिस्थितिकी तंत्र बनता है, जिसमें मछलियां और पौधे मिलकर विकास करते हैं। हाइड्रोपोनिक सिस्टम में पौधों को मिट्टी की जगह पानी में विकसित किया जाता है, जिससे पौधों को मल्च और उपयुक्त न्यूट्रिएंट्स मिलते हैं। इसके बाद, मछलियों का मल समतुल्य पारिस्थितिकी तंत्र को पूर्ण करने में मदद करता है। इस प्रक्रिया में, मछलियों के मल से बनने वाले न्यूट्रिएंट्स पौधों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं और पौधों के जड़ों में पहुंचने पर ये न्यूट्रिएंट्स पौधों के विकास को प्रोत्साहित करते हैं।
एक्वापोनिक फार्मिंग में पानी का उपयोग बहुत अच्छे तरीके से होता है, जिससे खेती में कई फायदे होते हैं, जैसे – जगह की बचत और समृद्धि में वृद्धि। इस प्रणाली का अध्ययन करने और सीखने के बाद अब काफी भारतीय किसान इसे अपना रहे हैं और इससे उन्हें अधिक उत्पादकता व सुरक्षित खेती का मॉडल प्राप्त हो रहा है। एक्वापोनिक फार्मिंग ने भारतीय कृषि में एक नए युग की शुरुआत की है, जो सुरक्षित और अधिक उत्पादकता के साथ भविष्य की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। इस तकनीक का प्रयोग करके किसान अपनी खेती को नई ऊँचाईयों तक पहुंचा सकते हैं।