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अरहर की फसल को ये रोग व कीट पहुंचाते हैं नुकसान, ऐसे करें इनका उपचार

नई दिल्ली: दलहनी फसलों में अरहर एक प्रमुख फसल है। हमारे देश में दाल के रूप में जिन अनाजों का उपयोग किया जाता है, उनमें अरहर सर्वप्रमुख है। इसलिए इसकी खेती बढ़िया मुनाफा प्रदान करती है। लेकिन, यदि इस फसल की सही से देखभाल न की जाए तो इसपर कई बीमारियों व कीटों का हमला होने लगता है।

अरहर की खेती को उकटा रोग से काफी नुकसान पहुंचता है। यह रोग फ्यूजेरियम नाम के कवक से फैलता है। इस रोग के लक्षण समान्यतया फसल में फूल लगने की अवस्था में दिखाई पडते हैं। सितंबर से जनवरी महिनों के बीच यह रोग आमतौर पर देखा जा सकता है। इस रोग से प्रभावित होने पर अरहर का पौधा पीला होकर सूख जाता है। अरहर की जडें सड़ कर गहरे रंग की हो जाती हैं। साथ ही पौधे की छाल हटाने पर जड़ से लेकर तने की ऊँचाई तक काले रंग की धारियाँ भी दिखाई देती हैं। अरहर की फसल को इस बीमारी से बचाने के लिए रोगरोधी प्रजातियों जैसे कि जे.के.एम-189, सी.-11, जे.के.एम-7, बी.एस.एम.आर.-853 व आशा आदि की बुआई करनी चाहिए। इसके अलावा उन्नत प्रजातियों के बीज बीजोपचार के बाद ही बोना ठीक होता है। गर्मी में खेत की गहरी जुताई करने व अरहर के साथ ज्वार की अंतरवर्तीय फसल बोने से भी इस रोग का संक्रमण कम होता है।

उकठा रोग के अलावा बांझपन विषाणु रोग भी अरहर की फसल के लिए काफी नुकसानदायक माना जाता है। यह रोग विषाणु के कारण होता है। इसके लक्षण ग्रसित पौधों के उपरी शाखाओं में छोटी पत्तियों के रूप में, पत्तियों के हल्के रंग में तथा फूल व फली में कमी के रूप में दिखते हैं। यह रोग माईट के द्वारा फैलता है। इसकी रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्मों को लगाना चाहिए। खेत में बेमौसम रोग ग्रसित अरहर के पौधों को उखाड कर नष्ट कर देना चाहिए व माईट पर नियंत्रण करना चाहिए। बांझपन विषाणु रोग रोधी जातियां जैसे आई.सी.पी.एल. 87119 (आषा), बी.एस.एम.आर.-853, व 736 लगाने से भी बांझपन विषाणु रोग की रोकथाम होती है।

अरहर की फसल को नुकसान पहुंचाने वाला एक अन्य प्रमुख रोग है – फायटोपथोरा झुलसा रोग। इस रोग से ग्रसित होने पर अरहर का पौधा पीला होकर सूख जाता है। इसमें पौधे के तने पर गठाननुमा असीमित वृद्धि दिखाई देती है व पौधा हवा आदि चलने पर यहीं से टूट जाता है। इसकी रोकथाम के लिए 3 ग्राम मेटेलाक्सील फफूँदनाशक दवा से प्रति किलो के हिसाब से बीज को उपचारित करें। साथ ही बुआई पाल या रिज पर करें। इसके अलावा रोगरोधी किस्मों जे.ए.-4 एवं जे.के.एम.-189 की बुआई करें।

किसान मित्रों, अरहर की फसल में कई और प्रकार के रोगों का हमला होता है, जिनपर आप कृषि कार्यों में थोड़ा बदलाव कर भी नियंत्रण कर सकते हैं। जैसे –

  • फसल की बुआई से पहले गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें।
  • कभी भी शुद्ध या सतत अरहर न बोएँ।
  • उचित फसल चक्र अपनाएँ।
  • क्षेत्र में एक समय पर बोनी करें।
  • इसके अलावा हमेशा खाद की अनुशंसित मात्रा ही डालें।

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