नई दिल्ली: दलहनी फसलों में अरहर एक ऐसी फसल है जिसका बाज़ार भाव हमेशा अच्छा बना रहता है। अरहर की फसल अकेली तथा दूसरी फसलों के साथ भी बोई जा सकती है। ज्वार, बाजरा, उड़द और कपास अरहर के साथ बोई जाने वाली प्रमुख फसलें हैं। अरहर की फसल के लिए बलुई दोमट व दोमट भूमि अच्छी होती है। उचित जल निकास तथा हल्के ढालू खेत अरहर के लिए सर्वोत्तम होते हैं। किसान मित्रों, खेत की तैयारी करते समय पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। इसके बाद बाद 2 से 3 जुताइयां देसी हल से करें। जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को तैयार कर लें।
अगर आप अरहर की अगेती किस्मों को बोना चाहते हैं तो पारस, पूसा-992 व टा-21 में से किसी भी किस्म का चुनाव कर सकते हैं। इन प्रजातियों को सिंचित क्षेत्रों में जून के मध्य तक बो देना चाहिए, जिससे यह फसल नवम्बर के अन्त तक पक कर तैयार हो जाए और दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में गेहूं की बुवाई सम्भव हो सके। जबकि देर से पकने वाली प्रजातियों में बहार, अमर, नरेन्द्र अरहर-1, आजाद, पूसा-9 या फिर मालवीय विकास अच्छी मानी जाती हैं। ये किस्में 260 से 275 दिन के अंदर पकती हैं। इनकी बुआई जुलाई महीने में करनी चहिए।
किसान मित्रों, अरहर की बुवाई हल के पीछे कूंड़ों में करनी चाहिए। प्रजाति तथा मौसम के अनुसार बीज की मात्रा तथा बुआई की उचित दूरी बरकरार रखना काफी ज़रूरी है। बुआई के 20-25 दिन बाद पौधे की दूरी सघन पौधों को निकालकर निश्चित कर देनी चाहिए। अगर आप बुआई रिज विधि से करेंगे तो आपको आधिक पैदावार प्राप्त होगी। अरहर की अच्छी उपज लेने के लिए 10-15 कि.ग्रा. नत्रजन, 40-45 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 20 किग्रा. सल्फर की प्रति हे. में आवश्यकता होती है।
किसान मित्रों, जहाँ तक बात है अरहर की फसल की सिंचाई की तो खेत में कम नमी की अवस्था में एक सिंचाई फलियां बनने के समय अक्टूबर महीने में ज़रूर करें। जबकि देर से पकने वाली प्रजातियों में पाले से बचाव के लिए दिसम्बर या जनवरी महीने में सिंचाई करना फायदेमंद साबित होती है।