नई दिल्ली: अश्वगंधा कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाली एक औषधीय फसल है। इसमें अनेक औषधीय गुण मौजूद होते हैं, इसलिए बाज़ार में इसकी मांग हमेशा ऊँचे भाव के साथ बनी रहती है। अश्वगंधा की जड़, पत्तियाँ, फल और बीज औषधि के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं। इसकी खेती कर किसान लागत का तीन गुना लाभ प्राप्त कर सकते हैं। अन्य फसलों की अपेक्षा इस फसल को प्राकृतिक आपदा का खतरा काफी कम होता है। इस औषधीय फसल की बुआई के लिए जुलाई से सितंबर का महीना उपयुक्त माना जाता है। वर्तमान समय में पारंपरिक खेती में हो रहे नुकसान को देखते हुए अश्वगंधा की खेती किसानों के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। लेकिन अश्वगंधा की खेती शुरू करने से पहले उन कारकों के बारे में जान लेना काफी ज़रूरी है, जो इसकी पैदावार को प्रभावित कर सकते हैं।
अश्वगंधा की फसल पर काली व हरी मक्खियों के हमले का खतरा अक्सर बना रहता है। ये आकार में काफी छोटी होती हैं। काली और हरी मक्खियाँ फसल पर बहुत तेजी से अपना प्रकोप फैलाती हैं। इस वजह से यदि समय पर इन्हें रोकने के उपाय नहीं किए जाएँ तो अश्वगंधा की फसल को गंभीर नुकसान पहुँचता है। इनकी रोकथाम के लिए फसल पर 0.5% मैलाथियॉन और कैलथेन के 0.3% के घोल का छिड़काव 10-15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए।
अगर अश्वगंधा की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख कीटों की बात करें तो इसपर शाख के केंचुआ और जूँ का हमला होता है। केंचुआ की रोकथाम के लिए सुमीसिडिन 10 मि.ली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। जबकि फसल पर जैसे ही जूँ का हमला दिखे, तो रोकथाम के लिए इथियॉन 10 मि.ली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल पर स्प्रे करें।
अश्वगंधा की फसल पर विभिन्न रोगों के प्रकोप का भी खतरा बना रहता है। इस फसल पर नए पौधों का गलन और झुलस रोग जैसी बीमारियां देखी जा सकती हैं। नए पौधों का गलना और मुरझाना, यह बीमारी कीटों और नीमातोड के कारण होती है, जो बीजों और नए पौधों को नष्ट कर देते हैं। इस बीमारी की रोकथाम के लिए उन्नत किस्म के बीजों की बुआई करें। साथ ही रोग के लक्षण दिखते ही उनपर नीम से बने कीटनाशक का छिड़काव करें।
अश्वगंधा के पत्तों पर अक्सर धब्बे देखने को मिलते हैं। यह बीमारी फंगस, विषाणु और रोगाणु के कारण फैलती हैं, जिससे पत्तों पर बेरंगे धब्बे पड़ जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए बिजाई के 30 दिन बाद 3 ग्राम डाइथेन – एम 45 को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। इसके बावजूद भी यदि बीमारी के प्रभाव में कमी ना आए तो 15 दिनों के फासले पर दोबारा स्प्रे करें। ऐसा करने से अश्वगंधा के पत्तों से धब्बे धीरे-धीरे गायब होने लगेंगे।