नई दिल्ली: आजकल तमाम किसान परंपरागत कृषि के बजाय व्यावसायिक कृषि को महत्व दे रहे हैं। इस लिहाज से अभी औषधीय फसलों की खेती से किसानों को काफी अच्छा मुनाफा मिल रहा है। अगर आप तुलसी की खेती करने को सोच रहे हैं तो इसके जरिये आपको कई प्रकार से आमदनी हो सकती है, क्योंकि तुलसी के पौधे का विभिन्न हिस्सा औषधीय गुणों से भरपूर होता है। तुलसी की खेती के लिए जाड़े का मौसम सबसे उपयुक्त होता है। इसके अलावा यह गर्मी के मौसम में भी उत्तरी मैदानी भागों में उगाई जा सकती है। पाला, बर्फ तथा ओले पड़ने वाले स्थानों पर तुलसी की खेती की संभावना बहुत कम होती है।
तुलसी की बुआई बीज द्वारा की जाती है। इसके लिए नर्सरी में पौध तैयार किए जाते हैं। पौध के लिए अप्रैल-मई माह में तुलसी के बीजों को क्यारियों में आठ से दस गुना मिट्टी में मिलाकर बिछा दिया जाता है। इसके बाद हल्की सिंचाई की जाती है। बीजों की बुआई के 30 दिनों के बाद रोपाई के लिए पौधे तैयार हो जाते हैं।
तुलसी के पौधे कठोर प्रवृत्ति के होते हैं। इस वजह से इनपर रोगों का प्रकोप अमूमन कम ही होता है। लेकिन वर्षा ऋतु में तुलसी के पौधों में कीटों द्वारा प्रसारित कुछ रोग ज़रूर देखे जाते हैं। इस दौरान तुलसी के पौधों पर मुख्य रूप से लीफ ब्लाइड व लीफ स्पॉट ये दो प्रकार के रोग पाये जाते है। इन रोगों की वजह से पत्तियों पर गोल भूरे व काले धब्बे पड़ जाते है। इससे पौधे सूखने लगते है और पत्ते जल जाते हैं। इससे बचाव के लिए डायथेन जेड-78 या फिर डायथेन एम-45 का घोल बना कर 15-15 दिनों पर छिड़काव किया जा सकता है।
जब तुलसी की पत्तियाँ हरे रंग से हल्के सुनहरेपन की तरफ जाने लगें तो समझ लें कि फसल पक कर तैयार हो चुकी है। अब आप इसकी कटाई कर सकते हैं। अगर आप तुलसी की खेती करने जा रहे हैं तो बेहतर होगा कि सरकार की ओर से मिलने वाले अनुदान आदि के बारे में ज़रूर पता कर लें। इससे तुलसी की खेती पर आने वाली आपकी लागत में कमी आएगी और आपका मुनाफा बढ़ेगा।