नई दिल्ली: हमारे देश में सब्जियों की खेती करने वाले काफी किसान प्रमुख रूप से प्याज की खेती करते हैं और अच्छा मुनाफा कमाते हैं। महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडू, मध्य प्रदेश और आन्ध्र प्रदेश हमारे देश के प्रमुख प्याज उत्पादक राज्य है। प्याज की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। लेकिन इसकी खेती के लिए उचित जलनिकास वाली और जीवांशयुक्त उपजाऊ दोमट व बलुई दोमट मिट्टी बेहतर होती है। जहाँ तक pH मान का सवाल है तो यह 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। इससे बेहतर पैदावार प्राप्त करने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
प्याज को अधिक क्षारीय या दलदली मिट्टी में नही उगाना चाहिए। वैसे तो यह एक ठण्डे मौसम वाली फसल है, लेकिन इसे खरीफ के मौसम में भी उगाया जा सकता हैं। अच्छी फसल पाने के लिए आप इसकी उचित किस्मों का चुनाव अपने क्षेत्र की अनुकूलता के अनुसार कर सकते हैं। इसकी जानकारी आपको अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से मिल जाएगी।
प्याज की बेहतर पैदावार पाने के लिए भूमि की तैयारी का विशेष महत्व है। इसलिए खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या हैरा से करनी चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद खेत में पाटा लगाना आवश्यक होता है। इससे भूमि में नमी सुरक्षित रहती है और मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। प्याज की फसल को उचित मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इसलिए फसल में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए। बेहतर होगा कि आप रोपाई के एक दो महीने पहले खेत में प्रति हेक्टेयर की दर से 20 से 25 टन गोबर की सड़ी खाद डालें।
खरीफ मौसम में बोई जाने वाली प्याज की फसल के लिए 15-20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की आवश्यकता होती है। इस मौसम की फसल की रोपाई के तुरन्त बाद सिंचाई करनी चाहिए, अन्यथा सिंचाई में देरी से पौधों के मरने की संभावना बढ़ जाती हैं। मानसून के जाने के बाद खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली प्याज की सिंचाई आवश्यकतानुसार करनी चाहिए।
खरीफ मौसम की प्याज की फसल लगभग 5 महीनों में (नवम्बर-दिसम्बर तक) खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। जब प्याज की गाँठ अपना पूरा आकर ले ले और पत्तियां सूखने लगें तो 10-15 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। फिर प्याज के पौधों के शीर्ष को पैर की मदद से कुचल देना चाहिए। इससे कंद ठोस हो जाते हैं और उनकी वृद्धि रूक जाती है। इसके बाद कंदों को खोदकर खेत में ही कतारों में रखकर सुखा देना चाहिए।