नई दिल्ली: हमारे देश में दुग्ध उत्पादन के लिए प्रमुख रूप से गाय व भैंसों को पाला जाता है। अगर पिछले एक दशक के मुकाबले देखा जाए तो इनकी कीमत में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है। चूंकि इन्हें खरीदने में एक अच्छी पूंजी लगानी पड़ती है, इसलिए इनका उचित तरीके से देखभाल भी काफी ज़रूरी है। इनसे अधिक मात्रा में दुग्ध की प्राप्ति के लिए यह बहुत आवश्यक है कि ये स्वस्थ रहें, अन्यथा दुग्ध उत्पादन में कमी के अलावा इनपर लगाई गई पूँजी पर भी संकट के बादल मडराने लगते हैं। गाय व भैंसों को अकसर कुछ रोगों से संक्रमित होने का खतरा बना रहता है। मुख्य रूप से गलघोटू रोग से।
यह इन दुधारू पशुओं में होने वाला एक प्रमुख रोग है। यह रोग पाश्पास्चुरेला मल्टोसिडा नाम के जीवाणु के कारण होता है। इस रोग के लिए उत्तरदायी जीवाणु; प्रभावित पशु से स्वस्थ पशु में दूषित चारे, स्लाइवा या सांस के द्वारा पहुँचता है। भेड़, बकरी और ऊँट आदि में भी यह रोग देखा गया है लेकिन गाय व भैंस में यह रोग अधिक घातक होता है। इस रोग के साथ एक चिंता की बात यह भी है कि इससे प्रभावित पशुओं में मृत्यु दर 80 प्रतिशत से भी अधिक देखने को मिलती है। ऐसे में पशुधन को नुकसान न हो, इसलिए यह आवश्यक है कि समय रहते इस रोग से बचाव के उपाय अपनाएँ जाएँ।
संक्रमण के दो से पाँच दिन तक गलघोटू के जीवाणु सुषुप्त अवस्था में रहते हैं, लेकिन पाँच दिनों के बाद पशु के शरीर का तापमान अचानक बढ़ने लगता है और साथ ही रोग के अन्य लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं। आगे इस रोग के बढ़ने पर पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है। यह रोग बरसात के मौसम में अधिक फैलता हैं। कई बार तो बरसात के मौसम में यह रोग महामारी का रूप भी ले लेता है।
जहाँ तक गलघोटू रोग के कुछ प्रमुख लक्षणों का सवाल है तो इससे प्रभावित पशु को 106 से 107 डिग्री सेल्सियस तक बुखार चढ़ जाता है। रोगी पशु को सांस लेने में कठिनाई होती है और वह पानी पीना छोड़ देता है। साथ ही सांस लेते समय पशु के गले से सामान्य से अलग आवाज निकलती है। रोगी पशु की नाक बहती है, उसकी आँखों से आँसू निकलते हैं तथा उसके कुछ अंगों में सूजन भी आ जाती है। इन अवस्थाओं में यदि पशु को सही समय पर इलाज ना मिले तो वह ज़मीन पर गिर जाता है और अंत में उसकी मृत्यु हो जाती है। इसलिए पशु में गलघोटू रोग के लक्षण दिखते ही बिना समय गँवाए पशु चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए। जबतक पशु चिकित्सक द्वारा ईलाज ना शुरू हो जाए तब तक पशु को 4 मि.ली. युकेलिप्टस का तेल, 4 मि.ली. मेन्था का तेल, 4 ग्राम कपूर, 4 ग्राम नौसादर तथा 46 ग्राम कुटी सौंठ को 2 लीटर उबलते हुए पानी में डालकर पशु को देते रहें। ऐसा दिन में दो बार करें। इस दौरान पशु को सीधी हवा से बचाकर रखें। पशु को खाने के लिए नरम व पौष्टिक चारा दें। इसके अलावा उसे पीने का पानी देने से पहले हल्का गरम कर लें।
पशु गलघोटू रोग की चपेट में ना आएँ इसके लिए उन्हें चार से छह माह की आयु में ही गलघोटू रोग से बचाव के लिए पहला टीका अवश्य लगवाएं। बरसात के मौसम के शुरू होने के एक महीने पहले हर साल उनका टीकाकरण करवाते रहें। साथ ही जिन क्षेत्रों में गलघोटू एक स्थानिक बीमारी है, उन क्षेत्रों में प्रत्येक छह महीने के बाद इससे बचाव के लिए टीकाकरण किया जाता है। अतः अगर आप ऐसे क्षेत्र में रहते हैं तो इसी अंतराल पर पशुओं का टीकाकरण करवाते रहें।
बीमार पशुओं में गलघोटू रोग के लक्षण दिखाई देते ही अन्य स्वस्थ पशुओं से उनसे अलग कर दें तथा बीमार पशु के प्रयोग में आने वाले बर्तनों को स्वस्थ पशुओं के प्रयोग में न लाएं। बाड़े में सफाई की समुचित व्यवस्था रखें और बाड़े को 10% कास्टिक सोडा या 5% फिनाइल या 2 कापॅर सल्फेट के घोल से विसक्रंमित करें। इन तमाम उपायों को अपनाकर आप अपने पशुधन को सुरक्षित रख सकते हैं।