कृषि पिटारा

बीएयू को मिला नैनो रॉक फॉस्फेट फार्मूलेशन का पेटेंट

पटना: बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) सबौर, भागलपुर के मृदा वैज्ञानिकों ने नैनो रॉक फॉस्फेट फार्मूलेशन को विकसित करके मिट्टी में फास्फोरस की कमी को दूर करने के लिए एक नई पद्धति की खोज की है। इस पद्धति को भारत सरकार ने हाल ही में पेटेंट प्रदान किया है और इस पेटेंट की अवधि सितंबर 2020 से लेकर 2040 तक है। यह विशेष पद्धति, बीएयू के मृदा वैज्ञानिक टीम द्वारा विकसित की गई है।

नैनो रॉक फॉस्फेट फार्मूलेशन के विकसित होने के बाद, इसे मिट्टी में फास्फोरस की व्यापक कमी को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण साधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा। इस पद्धति का उपयोग करके निम्न ग्रेड के रॉक फॉस्फेट के सही उपयोग करने से विदेशों पर निर्भरता कम होगी। यह नई पद्धति खेती क्षेत्र में फास्फोरस की कमी को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करेगी।

इस पद्धति को विकसित करने वाली टीम का मुख्य वैज्ञानिक डॉ. कस्तूरिका सेन बेउरा, बताते हैं कि यह नैनो रॉक फॉस्फेट फार्मूलेशन भारत में पाए जाने वाले रॉक फॉस्फेट की एक मुख्य समस्या को समाधान करने का प्रयास है। भारतीय रॉक फॉस्फेट में पीटूओआइ5 (P2O5) 30 प्रतिशत से बहुत कम मात्रा में पाया जाता है, जबकि इसकी मात्रा चीन, अमेरिका और अन्य देशों में 30 प्रतिशत तक होती है। इसलिए, भारत में उपलब्ध रॉक फॉस्फेट का उपयोग उचित तरीके से फास्फोरस उर्वरक के रूप में किया जा सकेगा।

टीम ने नैनो रॉक फॉस्फेट फार्मूलेशन को प्रमुख अनाज फसलों में, जैसे धान और गेहूं, के साथ परीक्षण किया है। उन्होंने प्रयोगों द्वारा नई पद्धति की सफलता की पुष्टि की है। इस नैनो रॉक फॉस्फेट फार्मूलेशन के उपयोग से मिट्टी में छिड़काव करने पर 20-25% पौधों पर फास्फोरस की कमी को 45 से 50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। इस प्रयास की सफलता पर विश्वविद्यालय के कुलपति, डॉ. दुनिया राम सिंह ने गर्व व्यक्त किया और वैज्ञानिक टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह सफलता न केवल विश्वविद्यालय के लिए बल्कि मृदा विज्ञान के क्षेत्र में भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इस पद्धति को सरकार द्वारा पेटेंट प्रदान करने से राज्य और देश के किसानों को फास्फोरस के एक नये विकल्प की प्राप्ति होगी।

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