नई दिल्ली: भिंडी की बढ़िया पैदावार प्राप्त करने के लिए हानिकारक कीटों व रोगों पर नियंत्रण करना ज़रूरी है। इस फसल पर अक्सर विभिन्न रोगों का हमला होता रहता है। यदि इन्हें समय रहते नियंत्रित ना किया जाए तो ये भिंडी की पैदावार को काफी अधिक नुकसान पहुँचा देते हैं। भिंडी की फसल पर इन प्रमुख रोगों का प्रकोप देखने को मिलता है:
शिरा मोजैक: यह विषाणु जनित रोग है जो फल मक्खी द्वारा फैलता है। इसका संक्रमण अधिक होने पर पर पौधे का विकास रुक जाता है व पत्तियों की नसें पीली पड़ जाती हैं। इससे बचाव के लिए बीज के प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। इस रोग का प्रकोप बढ़ने पर एक लीटर जल में मैटासिस्टाक्स की 1.5 मि.ली. मात्रा को घोल कर 15-15 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करें।
पत्ती मरोड़ विषाणु रोग: इससे प्रभावित पौधों की पत्तियाँ अंग्रेजी के एस आकार की हो जाती हैं। इसके अलावा पत्तियों की नसों में मोटी-मोटी गांठें उभर आती हैं। पौधों पर फूल नहीं लगते हैं और यदि लगते भी हैं तो उनमें फली नहीं बनती है। इस रोग की वाहक सफेद मक्खी होती है।
सूखा व जड़ गलन रोग: इस रोग से फसल कभी भी प्रभावित हो सकती है, क्योंकि यह भूमि में उपस्थित फफूंद से फैलता है। इससे संक्रमित पौधे पीले दिखाई पड़ते हैं, जो बाद में सूख जाते हैं। फसल चक्र अपना कर व खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करके इस रोग की रोकथाम की जा सकती है। बीजों को 0.3 प्रतिशत थिरम या कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. की दर से उपचारित करके बुआई करने से भी इस रोग के प्रकोप की संभावना काफी कम हो जाती है।
चूर्णिल आसिता: इस रोग में भिंडी की पुरानी निचली पत्तियों पर सफेद चूर्ण के साथ हल्के पीले धब्बे तेजी से पड़ने लगते हैं। इसका नियंत्रण न करने पर पैदावार 30 प्रतिशत तक कम हो सकती है। इसके नियंत्रण के लिए घुलनशील गंधक दो ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर दो या तीन बार 12-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
पीत शिरा रोगः इस रोग की वजह से भिंडी की पत्तियों की शिराएं पीली होने लगती हैं। धीरे-धीरे पूरे पौधे को बीमार करते हुए यह रोग फलों को भी अपनी चपेट में लेकर उन्हें पीलाकर देता है। इस रोग के रोकथाम के लिए ऑक्सीमिथाइल डेमेटान या डाइमिथोएट का उपयोग किया जा सकता है।