कृषि पिटारा

बिहार: जैविक कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ले रही है पंचायत प्रतिनिधियों का सहारा

पटना: बिहार सरकार राज्य में जैविक या प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए पंचायतों से मदद ले रही है। को बढ़ावा देने के लिए पंचायत का सहारा ले रही है। किसानों को प्राकृतिक खेती के महत्व से परिचित करवाने के लिए सरकार पंचायत के प्रमुख जनप्रतिनिधि यानी मुखिया का सहारा ले रही है। इसके लिए मुखिया को प्रशिक्षण देने का काम भी शुरू कर दिया गया है।

बिहार प्रसार प्रबंधन एवं प्रषिक्षण संस्थान (बामेती), पटना द्वारा बिहार के 38 जिलों के सभी 8,387 ग्राम पंचायतों के मुखिया को प्राकृतिक खेती को लेकर जानकारी दी जा रही है। अभी तक 4,701 मुखिया ने ऑनलाइन माध्यम से आयोजित हो रहे इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में भागीदारी दर्ज की है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम 20 जून से 04 अगस्त तक चलेगा। फिलहाल एक दिन में चार जिलों के विभिन्न ग्राम पंचायतों के लिए प्रशिक्षण आयोजित किया जा रहा है। इसमें हर दिन प्रत्येक जिले से औसतन 50 मुखिया भाग ले रहे हैं। अभी तक बक्सर, भोजपुर, गया, औरंगाबाद, कैमूर, जहानाबाद, रोहतास, नालन्दा, बांका, भागलपुर, सारण, सीवान, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, वैशाली, पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण, शिवहर, दरभंगा, मधुबनी, नवादा, सीतामढ़ी, समस्तीपुर और सहरसा जिले के विभिन्न पंचायतों के मुखिया को प्रशिक्षण दिया गया है। इन पंचायत प्रतिनिधियों को प्राकृतिक खेती की जानकारी देने के लिए राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (मैनेज), हैदराबाद द्वारा बिहार के गया, पूर्णियां और कटिहार के उप परियोजना निदेशक को मास्टर ट्रेनर के रूप में प्रशिक्षित किया गया है।

खेतों में रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से से मिट्टी की उर्वरा-शक्ति अपने खतरनाक स्तर पर प्रभावित हो रही है। एक ओर जहां आज़ादी के समय भारत की मिट्टी में जैविक कार्बन का औसत ढाई प्रतिशत के स्तर पर था, वो अब 2022 में घटकर 0.4 प्रतिशत के स्तर पर आ गया है। यह सामान्य से बहुत नीचे है। इस स्थिति को देखते हुए जैविक अथवा प्राकृतिक खेती को अपनाना अब अति आवश्यक हो गया है।

गौरतलब है कि बिहार का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 93.60 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से लगभग 56 प्रतिशत क्षेत्र यानी 52.42 लाख हेक्टेयर में खेती की जाती है। इसमें लगभग 30.23 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान और लगभग 22.20 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की खेती की जाती है। इसके अतिरिक्त राज्य में मक्का, दलहन, तिलहन एवं अन्य मोटे अनाज की खेती भी की जाती है। बिहार में इतने बड़े स्तर पर रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से खेती की लागत बढ़ी है और किसानों को उनकी खेती से होने वाला लाभ कम हुआ है।

राज्य सरकार के उक्त प्रयासों के बारे में बामेती के निदेशक आभांशु सी जैन ने कहा कि, “प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति योजना प्रारम्भ की गई है। इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक प्रखंड स्तर पर 4-5 ग्राम पंचायतों को मिलाकर 1,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल को चयनित कर प्राकृतिक खेती के तरीकों से खेती कराई जाएगी। योजना के अंतर्गत्त प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को 2,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से सहायता दी जाएगी।”

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