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जायद, खरीफ और रबी सीजन में ऐसे करें लौकी की खेती, होगा अधिक मुनाफा

नई दिल्ली: लौकी की फसल वर्ष में तीन बार यानी जायद, खरीफ और रबी सीजन में उगाई जाती है। अगर आप लौकी की खेती करना चाहते हैं तो आपको बता दें कि यह सब्जी पाला को सहन करने में बिलकुल असमर्थ होती है। इसलिए ऐसे क्षेत्रों में लौकी की खेती न करें जहाँ अधिक ठंढ पड़ती है। लौकी की खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में की जा सकती हैं। लेकिन उचित जल धारण क्षमता वाली जीवाश्मयुक्त हल्की दोमट मिट्टी इसकी सफल खेती के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। हालाँकि, कुछ अम्लीय भूमि में भी लौकी की खेती की जा सकती है।

जायद की अगेती बुआई के लिए मध्य जनवरी के लगभग लौकी की नर्सरी तैयार की जाती है। इस दौरान खेत की अच्छे से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए। इसके बाद मिट्टी में जैविक खाद मिलानी चाहिए। लौकी की खेती के लिए एक एकड़ में लगभग 15 से 20 हजार की लागत आती है। इतने क्षेत्र में लौकी की खेती कर लगभग 70 से 90 क्विंटल तक लौकी का उत्पादन हो जाता है। इतने उत्पादन से बाजार में भाव अच्छा मिल जाने पर 80 हजार से एक लाख रुपए तक शुद्ध आय होने की सम्भावना रहती है।

रबी के मौसम में लौकी की खेती के दौरान केवल हाईब्रीड बीज का प्रयोग किया जाता है, जिससे जाड़ों के दिनों में भी अच्छा उत्पादन होता रहता है। कोयम्बटूर‐1, अर्का बहार, नरेंद्र रश्मि, पूसा संदेश और पूसा नवीन इत्यादि लौकी की कुछ उन्नत किस्में हैं। जहाँ तक बात है बीज की मात्रा की तो जायद सीजन वाली फसल के लिए आप 4‐6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज का प्रयोग करें। वहीं खरीफ सीजन की फसल के लिए बीज की मात्रा 3‐4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से रखें।

लौकी की ग्रीष्मकालीन फसल को 4‐5 दिन के अंतर पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। जबकि वर्षाकालीन फसल के लिए सिंचाई की आवश्यकता तभी होती है जब वर्षा न हो। वहीं खरीफ की फसल की सिंचाई 10 से 15 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए।

लौकी की तुड़ाई काफी हद तक उनकी प्रजातियों पर निर्भर करती है। जब फल पूरी तरह से विकसित हो जाएँ तभी उनकी तुड़ाई करनी चाहिए। अगर लौकी की फसल अच्छी तरह से लगी हो और उसका ठीक तरह से देखभाल किया गया हो तो इससे आपको प्रति हेक्टेयर 200 से लेकर 250 क्विंटल तक उपज मिल सकती है।

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