नई दिल्ली: कृषि के जरिये बेहतर मुनाफा कमाने के लिए अब काफी किसान पारंपरिक कृषि से इतर कुछ नए प्रयोग कर रहे हैं। इससे नवीन संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं। केंद्र सरकार भी किसानों विभिन्न फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इन्हीं में से एक है – औषधीय फसलों की खेती। औषधीय फसलों की खेती करने पर किसानों को नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड की ओर से अच्छा खासा अनुदान दिया जा रहा है। औषधीय फसलों की खेती किसानों के लिए बेहतर मुनाफे वाली साबित हो रही है। इसके कई कारण हैं, मसलन – सरकार की ओर से अनुदान मिलने की वजह से किसानों की लागत कम हो रही है। इसके अलावा बाज़ार में औषधीय फसलों की अच्छी खासी मांग है। इसलिए किसानों को अच्छा मूल्य प्राप्त होता है। साथ ही, औषधीय फसलों के विभिन्न हिस्से जैसे पत्तियाँ, तना और जड़ आदि भी काफी मूल्यवान होते हैं। इसलिए औषधीय फसलों के फल-फूल के अलावा विभिन्न हिस्सों की बिक्री पर भी अतिरिक्त कमाई हो जाती है।
यदि आप औषधीय पौधों की खेती करना चाहते हैं तो आपके पास ब्राह्मी की खेती के रूप एक बेहतर विकल्प मौजूद है। ब्राह्मी की खेती आमतौर पर गर्म और नमी वाले इलाकों में आसानी से की जाती है। इसका पूरा पौधा कई प्रकार के औषधीय गुणों से भरपुर होता है। इसके बीज, जड़ें, पत्ते और गाँठो का प्रयोग अलग-अलग प्रकार की दवाइयों को बनाने के लिए किया जाता है। ब्राह्मी से तैयार दवाईयों का प्रयोग कैंसर, अनीमिया, दमा, और मिरगी आदि के इलाज के लिए किया जाता है। इन तमाम प्रकार के औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण ब्राह्मी की खेती में बढ़िया मुनाफा है।
ब्राह्मी की बिजाई मध्य जून या जुलाई महीने के शुरू में कर लेनी चाहिए। प्रति एकड़ खेत में बिजाई के लिए लगभग 25000 कटे हुए हिस्सों की जरूरत होती है। अगर बात करें भूमि की तैयारी की तो ब्राह्मी की खेती के लिए भुरभुरी और समतल मिट्टी की जरूरत होती है। इसलिए मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरा बनाने के लिए खेत की अच्छे से जुताई करें और फिर हैरों का प्रयोग करें। जुताई करते समय खेत में 20 क्विंटल रूड़ी की खाद भी डालें और मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। ब्राह्मी को कई प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है। लेकिन दलदली मिट्टी में ब्राह्मी से अच्छी पैदावार मिलती है। इसलिए जहाँ तक संभव हो इसे दलदली इलाकों, नहरों और अन्य जल स्त्रोतों के पास ही उगाने की कोशिश करें। प्रयागशक्ति और सुबोधक ब्राह्मी की उन्नत किस्में हैं। इनसे बढ़िया पैदावार प्राप्त होती है। ब्राह्मी का रोपण आमतौर पर मार्च-जून महीने में किया जाता है और फसल की कटाई का कार्य अक्टूबर-नवंबर महीने में किया जाता है। कटाई के समय पौधे के तने का वो हिस्सा जो 4 से 5 सेमी. का होता है, उसे काटना चाहिए। ब्राह्मी की कटाई एक वर्ष में 2 से 3 बार की जा सकती है। इस वजह से किसानों को इसकी खेती से पूरे साल आमदनी होती रहती है।