कृषि पिटारा

ब्रोकली की फसल को ये रोग पहुँचाते हैं नुकसान, ऐसे करें इन्हें नियंत्रित

नई दिल्ली: ब्रोकली एक ठंडे मौसम वाली फसल है। इसकी खेती बसंत ऋतु में की जाती है। इसमें आयरन, कैल्शियम और विटामिन जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में मिलते हैं, इसलिए बाज़ार में इसकी अच्छी खासी मांग है। विशेषकर शहरी बाज़ारों में। जो किसान सब्जी उत्पादन के जरिये अच्छी आमदनी के किसी विकल्प की तलाश कर रहे हैं, उन्हें ब्रोकली की खेती के बारे में ज़रूर विचार करना चाहिए। यदि आप ब्रोकली की खेती करने की सोच रहे हैं तो बेहतर होगा कि इसे नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख रोगों के बारे में भी पहले से ही जागरूक रहें, ताकि सही समय पर उनपर नियंत्रण कर हानि की संभावना से बचा जा सके। ब्रोकली की फसल पर निम्न रोगों का प्रकोप अक्सर देखा जाता है:

काला विगलन : यह एक प्रकार का जीवाणु जनित रोग है। इस रोग का प्रभाव पत्तियों के किनारों पर V आकार में दिखता है। इस रोग के प्रभाव से ब्रोकली की शिराएँ धीरे-धीरे काली व भूरी हो जाती हैं। और अंत में पत्तियाँ मुरझा कर व पीली पड़ कर गिर जाती हैं।

ब्रोकली के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए बीजों को बोने से पहले 50 डिग्री C पर आधे घंटे तक गर्म पानी में उपचारित करें। साथ ही रोगग्रस्त पौधे को उखाड़कर जला दें ताकि संक्रमण न बढ़ पाए।

पत्ती का धब्बा रोग: यह एक फफूंदजनित रोग है। इसके प्रभाव से ब्रोकली की पत्तियों पर गहरे रंग के छोटे-छोटे गोल धब्बे बन जाते हैं।
इस रोग पर नियंत्रण के लिए रोगी पौधों को उखाड़कर जला दें। इसके अलावा इंडोफिल M-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें।

लालामी रोग: ब्रोकली के पौधों में यह रोग बोरॉन की कमी से होता है। इसकी वजह से ब्रोकली के फूल का रंग कत्थई हो जाता है । इस रोग का प्रकोप बढ़ने पर फूलों के बीच-बीच में तथा डंठल व पत्तियों पर काले रंग के धब्बे बन जाते हैं। धीरे-धीरे पौधे अविकसित होने लगते हैं और फिर डंठल खोखले हो जाते हैं।

इस रोग से बचाव के लिए पौधों पर 0.3% बोरेक्स के घोल का छिडकाव करें।

काली मेखला: काली मेखला भी एक प्रकार का फंफूद जनित रोग है। इसका प्रभाव नर्सरी में ही बुआई के 15-20 दिनों में दिखाई देने लगता है। इस दौरान ब्रोकली के पत्तियों पर धब्बे बन जाते हैं और बीच का भाग राख जैसा धूसर हो जाता है। यही नहीं फूलों के बड़े होने पर रोगग्रस्त पौधे गिर जाते हैं।

इस रोग के उपचार के लिए फसल चक्र में तीन साल के लिए बदलाव करें और सरसों कुल के पौधों को नही बोएँ। साथ ही बीजों को बुआई से पहले 50 डिग्री C पर आधे घंटे तक गर्म पानी में उपचारित करें।

काला तार: यह भी एक फंफूद जनित रोग है। इसकी वजह से तना तारकोल जैसा काला पड़ जाता है। इससे बचाव के लिए पौधों पर 10 से 15 दिनों के अंतराल पर ब्रेसिकाल की 0.2% मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करें। बीज उपचार व पौध उपचार के जरिये भी इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।

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