नई दिल्ली: भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चना की खेती प्रमुखता से की जाती है। इस फसल की खेती के लिए वैसी भूमि का चुनाव करना चाहिए, जिसमें जल न ठहरता हो। चना की खेती, धान की फसल काटने के बाद की जाती है। यानी चना की बुआई अक्टूबर माह के अंत में या नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में शुरू कर देनी चाहिए जबकि, असिंचित अवस्था में चना की बुआई अक्टूबर के द्वितीय सप्ताह तक हर हाल में पूरी कर लेनी चाहिए। बुआई में अधिक विलम्ब करने पर इस फसल की पैदावार कम हो जाती है। इसके अलावा फसल में चना फली भेदक के प्रकोप की सम्भावना भी बढ़ने लगती है। ऐसे में अक्टूबर का प्रथम सप्ताह चना की बुआई के लिए सर्वोत्तम समय है।
चना की खेती के लिए खेत की मिट्टी को बहुत ज्यादा महीन या भुरभुरी बनाने की आवश्यकता नही होती है। बुआई के लिए खेत को तैयार करते समय 2-3 जुताईयाँ कर खेत को समतल बनाने के लिए पाटा लगाना अच्छा होता है। इससे खेत की नमी संरक्षित रहती है। जहाँ तक बात है बीज के किस्मों की तो क्षेत्रवार संस्तुत रोगरोधी प्रजातियाँ तथा प्रमाणिक बीजों का चयन कर अच्छी पैदावार की उम्मीद की जा सकती है। चने के बुआई के लिए खेत पूर्व फसलों के अवषोषों से मुक्त होना चाहिये। इससे भूमिगत फफूंदों का विकास नहीं होगा। बीज की बुआई से पहले बीजों की अंकुरण क्षमता की जांच भी बहुत ज़रूरी है। ऐसा करने के लिए 100 बीजों को पानी में आठ घंटे तक भिगो दें। इसके बाद उन्हें पानी से निकालकर गीले तौलिये या बोरे में ढँक कर साधारण कमरे के तामान पर रखें। फिर 4-5 दिनों बाद अंकुरितक बीजों की संख्या गिन लें। अगर 90 से अधिक बीज अंकुरित हुए हों यह समझें कि अंकुरण का प्रतिशत ठीक है। जबकि यदि इससे कम बीज अंकुरित हुए हों तो बोनी के लिये उच्च गुणवत्ता वाले बीज का उपयोग करें या फिर बीज की मात्रा बढ़ा दें।
चने के बीजों की बुआई समुचित नमी वाली अवस्था में सीडड्रिल की सहायता से करें। यदि खेत में नमी कम हो तो बीज को नमी के सम्पर्क में लाने के लिए बुआई गहराई में करें तथा पाटा लगाएँ। बुआई के दौरान पौध संख्या 25 से 30 प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से रखें। साथ ही पंक्तियों के बीच 30 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे के बीच की 10 सेंटीमीटर की दूरी बनाए रखें। यदि आप चने की पछेती बुआई कर रहे हैं तो इस अवस्था में कम वृद्धि के कारण उपज में होने वाली क्षति की भरपाई के लिए सामान्य बीज दर में थोड़ी वृद्धि कर बोनी करें। देरी से बोनी की अवस्था में पंक्ति से पंक्ति की दूरी घटाकर 25 सेंटीमीटर रखें।
जहाँ तक बीज दर का सवाल है तो चने के बीज की मात्रा दानों के आकार, बुआई के समय व भूमि की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है। इसके अलावा उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना अच्छी पैदावार पाने की संभावना में वृद्धि करता है।
चने की फसल को भी अन्य फसलों की तरह विभिन्न रोगों से ग्रसित होने का खतरा बना रहता है। उकठा एवं जड़ सड़न रोग उन्हीं में से एक हैं। इनसे फसल के बचाव के लिए 2 ग्राम थायरम तथा 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम के मिश्रण से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करें। इसके अलावा आप प्रति किलोग्राम चने के बीजों को बीटा वेक्स की 2 ग्राम मात्रा से भी उपचारित कर सकते हैं।