किसान मित्रों, आलू एक ऐसी सब्जी है जिसकी मांग हर घर में पूरे साल रहती है। यह भी देखा जाता है कि जब बाज़ार में आलू की नई फसल बाज़ार में पहुँचती है तो इसका भाव काफी ज़्यादा नीचे गिर जाता है। इससे किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में अनेक किसान यह मानने लगते हैं कि आलू की खेती में कोई विशेष मुनाफा नहीं है। लेकिन किसान मित्रों ऐसी बात नहीं है। जी हाँ, अगर आप पूरी समझदारी के साथ आलू की खेती करें तो काफी कम लागत में काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
इसके लिए आपको उन क़िस्मों की खेती करनी होगी जिनकी बाज़ार में अच्छी मांग है। बेहतर होगा कि आप आलू की उन क़िस्मों की खेती करें जिनसे चिप्स बनाए जाते हैं। चिप्स बनाने वाली छोटी से बड़ी कंपनियाँ किसानों से अच्छे भाव में इन किस्मों को खरीद लेती हैं। और किसान को उसकी मेहनत और लागत का अच्छा मूल्य मिलता है। तो चलिये जानते हैं चिप्स वाली आलू की कुछ प्रमुख किस्मों के बारे में:
कुफरी चिप्सोना-3
इस किस्म के कंद सफेद-क्रीमी, अंडाकार और सतही आँखों वाले होते हैं। यह किस्म 110 से लेकर 120 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार लगभग 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। खास बात ये है कि आलू की यह किस्म पिछेता और झुलसा रोग प्रतिरोधी है। यही नहीं, इसकी भंडारण क्षमता भी अच्छी होती है।
कुफरी हिमसोना
कुफरी हिमसोना किस्म के कंद सफेद-क्रीमी, गोल और सतही आँखों वाले होते हैं। इसकी फसल के तैयार होने का समय है 120 से लेकर 130 दिन। यह किस्म देश के पहाड़ी क्षेत्रों में लगभग 15-20 क्विंटल प्रति हैक्टर पैदावार देती है। मैदानी क्षेत्रों में इस किस्म से लगभग 300-350 क्विंटल उपज प्राप्त की जा सकती है। आलू की यह किस्म पिछेता और झुलसा रोग की मध्यम प्रतिरोधी है। इसकी भंडारण क्षमता अच्छी
है। और इस किस्म के कंद चिप्स तथा लच्छा बनाने के लिए उपयुक्त हैं।
कुफरी चिप्सोना-4
कुफरी चिप्सोना-4 किस्म के कंद सफ़ेद-क्रीमी, गोल-अंडाकार, सतही आंखों वाले होते हैं। और इस किस्म के तैयार होने का समय है 100 से ले कर 110 दिन। आलू की इस किस्म से देश के कुछ हिस्सों में खरीफ के सीजन में 180 से 220 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक भी उपज प्राप्त की जा सकती है। वहीं मैदानी इलाकों में रबी सीजन में लगभग 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है। कुफरी चिप्सोना-4 कर्नाटक, पश्चिम बंगाल व मध्य प्रदेश के लिए उपयुक्त किस्म है। अच्छी भंडारण क्षमता से इस किस्म को लंबी अवधि के लिए रखने में मदद मिलती है और इस तरह कच्चे माल की वर्षभर उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है।