कम्पोस्ट कई पोषक पदार्थों से भरपूर एक जैविक उर्वरक है। इसका निर्माण कई प्रकार के जैविक पदार्थों के अपघटन व पुनःचक्रण के बाद होता है। एक अच्छा कम्पोस्ट खाद गन्द रहित भूरे या भूरे काले रंग का होता है। इसमें आधे से एक प्रतिशत तक पोटाश और अन्य कई पोषक तत्वों की मौजूदगी होती है।
अगर आप कम्पोस्ट खाद बना रहे हैं तो ज़रूरी है कि इस दौरान आप कुछ बातों का ध्यान रखें। जैसे:
कम्पोस्ट में पानी की उचित मात्रा को बरकरार रखना आवश्यक है। अधिक पानी समूचे खाद की गुणवत्ता को नष्ट कर सकता है।
अक्सर ऐसा होता है कि हम तमाम अपशिष्ट पदार्थों को कम्पोस्ट बनाने में शामिल कर लेते हैं। लेकिन ऐसा करना नुकसानदेह है। कम्पोस्ट बनाते समय गड्ढे में से प्लास्टिक, पॉलीथीन, दवाइयों के कवर व अंडे के छिलके इत्यादि को ज़रूर अलग कर लें। क्योंकि ये वो पदार्थ हैं जो कभी नहीं नष्ट होते या फिर देर से नष्ट होते हैं।
जल्दीबाजी में कम्पोस्ट कभी भी नहीं बनाएँ। क्योंकि आधा सड़ा हुआ कम्पोस्ट पौधों को फायदे के बजाय नुकसान पहुंचता है।
कम्पोस्ट बनाने के प्रक्रिया शुरू करने के दो-तीन बाद यह ज़रूर देख लें कि गड्ढे, ढेर या विंडरों के अंदर का तापमान बढ़ रहा है या नहीं। यदि तापमान में वृद्धि हो रही है तो समझ लें कि कम्पोस्ट बनने की प्रक्रिया में सब कुछ सही है। ऐसा नहीं होने का मतलब है कि कम्पोस्ट बनाने में कहीं न कहीं कुछ कमी रह गयी है।
कम्पोस्ट जब पूरी तरह बनकर तैयार हो जाता है तो उसमें से बदबू आनी बंद हो जाती है और पौधों के लिए कई प्रकार के प्राकृतिक लाभदायक कीट दिखाई देने लगते हैं। इसलिए इसकी जाँच करने के बाद ही कम्पोस्ट का प्रयोग शुरू करें।
कम्पोस्ट का प्रयोग करने से पहले उसकी विषाक्तता की जाँच बहुत ज़रूरी है। इसके लिए कम्पोस्ट का घोल बना लें और उसके ऊपर के पानी से सरसों के लगभग 100 दानों को अंकुरित करा कर देखें। अगर सरसों के 90 प्रतिशत दाने अंकुरित हो जाते हैं तो समझ लें कि कम्पोस्ट अच्छा है। विषाक्त नहीं है। यदि कम से कम 80 प्रतिशत दाने अंकुरित ना हो पाएँ तो उस कम्पोस्ट का प्रयोग नहीं करें।