कृषि पिटारा

धनिया की खेती किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही है

नई दिल्ली: मसाला फसलों में धनिया का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसकी खुशबू और स्वाद के कारण इसे सब्जियों में मसालों के साथ प्रयोग किया जाता है। धनिया की मांग हमेशा बनी रहती है। इसके कारण किसानों के लिए धनिये की खेती लाभकारी साबित हो सकती है। धनिये की खेती मुख्य रूप से पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, बिहार, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है।

धनिये की बुवाई का उचित समय अक्टूबर से नवंबर के बीच होता है। बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है, जिससे इसके अच्छे दाम मिलते हैं। यह फसल काफी कम समय में तैयार हो जाती है। किसानों के लिए धनिये की खेती एक लाभकारी सौदा साबित हो सकती है। इसके लिए उन्हें उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए। जैसे:

कुंभराज: इस किस्म के धनिये के दाने छोटे आकार के होते हैं और पौधे में सफेद रंग के फूल आते हैं। यह किस्म उकठा रोग और भूतिया रोग के प्रति सहनशील होती है। इससे प्रति एकड़ 5.6 से 6 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त हो सकती है।

आरसीआर 41: इस किस्म के धनिये के दाने छोटे और गुलाबी फूलों वाले होते हैं। इसकी पैदावार 9 से 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

सिम्पो एस 33: इस किस्म के धनिये के पौधे मध्यम ऊंचाई के होते हैं। इसमें पत्तियों की मात्रा अधिक होती हैं। यह किस्म उकठा रोग, स्टेमगाल रोग और भूतिया रोग के प्रति सहनशील होती है। इससे प्रति एकड़ 4.1 से 5.2 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त हो सकती है।

आरसीआर 446: इस उन्नत किस्म के धनिये का दाना मध्यम आकार का होता है। यह किस्म असिंचित क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त है। इसकी पैदावार क्षमता 19 से 21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

अगर आप भी धनिये की खेती का मन बना रहे हैं तो इसकी उन्नत क़िस्मों का चुनाव कर बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं।

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