नई दिल्ली: मटर भारत में सबसे लोकप्रिय और पौष्टिक सब्जियों में से एक है। यह रबी की प्रमुख दलहनी फसलों में से एक है, जिससे कम समय में अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा, यह भूमि की उर्वराशक्ति को भी बढ़ाती है, क्योंकि इसमें मौजूद राइजोबियम जीवाणु भूमि में नाइट्रोजन को बांधते हैं। मटर में प्रोटीन, विटामिन, फास्फोरस और लोहा जैसे तत्व भी होते हैं, जो मानव शरीर के लिए लाभदायक होते हैं। मटर का उपयोग सब्जी, दाल, सूप, सलाद और अन्य व्यंजनों में किया जाता है।
मटर की खेती किसी भी तरह की उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन गहरी, दोमट और चिकनी मिट्टी ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए। मटर की खेती के लिए उपयुक्त मौसम शीतकाल है, जब तापमान 10°C से 25°C के बीच रहता है। मटर की खेती के लिए अलग-अलग किस्में उपलब्ध हैं, जैसे कि अरकेल, बोनविल, विजय, पूसा प्रगति, हिसार उन्नति आदि।
मटर की खेती के लिए जमीन को अच्छी तरह से तैयार करना जरूरी है। जमीन को हल या कल्टीवेटर से दो-तीन बार जोतना चाहिए। जमीन को बारीक और समतल बनाने के लिए लेवलर का उपयोग करना चाहिए। मटर की बुवाई के लिए रिज या फुर्रो में बीज डालना चाहिए। बीज को 3-4 सेंटीमीटर की गहराई में रखना चाहिए। बीज के बीच की दूरी 20-25 सेंटीमीटर और रिज के बीच की दूरी 45-60 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
मटर की खेती के लिए जलवायु और जमीन के अनुसार उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए। मटर की फसल को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की आवश्यकता होती है। इन उर्वरकों को बुवाई के समय या बाद में जमीन में मिलाना चाहिए। उर्वरकों की मात्रा जमीन के प्रकार और उपजाऊता पर निर्भर करती है। आम तौर पर, 40-50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60-80 किलोग्राम फॉस्फोरस और 40-50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की मात्रा में देना चाहिए।
मटर की फसल को नियमित रूप से सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई की आवश्यकता जलवायु, जमीन और फसल के विकास के अनुसार होती है। आम तौर पर, मटर की फसल को 4-5 बार सिंचाई करनी चाहिए। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद, दूसरी सिंचाई 20-25 दिनों के बाद, तीसरी सिंचाई 40-45 दिनों के बाद, चौथी सिंचाई 60-65 दिनों के बाद और पांचवीं सिंचाई 80-85 दिनों के बाद करनी चाहिए।
मटर की फसल को कीटों और रोगों से बचाने के लिए उचित सुरक्षा उपाय करना चाहिए। मटर की फसल पर कई प्रकार के कीट और रोग हमला कर सकते हैं, जैसे कि अफीड, जस्सीड, फली का भेदक, फसल का बुराड़ा, फुसेरियम विल्ट, पाउडरी माइल्ड्यू आदि। इन कीटों और रोगों से बचने के लिए बीज को बुवाई से पहले थायरम या कैप्टन में डुबोकर साफ करना चाहिए। इसके अलावा फसल को नियमित रूप से जांचना चाहिए और कोई लक्षण दिखने पर तुरंत उपचार करना चाहिए। कीटों और रोगों को रोकने के लिए उपयुक्त कीटनाशक और रोगनाशक का छिड़काव करना चाहिए।