डेयरी व्यवसाय के लिए आजकल कालाहांडी भैंस पशुपालकों की पहली पसंद बनी हुई है, इसका एक कारण कम रख रखाव में अधिक दूध देना। इसका रंग सलेटी से गहरा सलेटी, चपटा माथा, काले रंग की पूंछ, माथा उभरा हुआ, छोटा कूबड़ और लेवा गोल और आकार में मध्यम होता है। यह नसल एक ब्यांत में औसतन 680-900 लीटर दूध देती है। यह नसल बीमारियों के प्रतिरोधक और ताप और ठंड को सहनेयोग्य है। मूलतः इनका जन्म स्थान उड़ीसा है।
इस नस्ल की भैंसों को खुराक जरूरत के अनुसार चाहिए होता है, इन्हें फलीदार चारे एवं तूड़ी भोजन के रूप में पसंद है।
आवश्यक खुराकी तत्व- उर्जा, प्रोटीन, कैलशियम, फासफोरस, विटामिन ए।
अन्य खुराक
• दाने – मक्की/गेहूं/जौं/जई/बाजरा
• तेल बीजों की खल – मूंगफली/तिल/सोयाबीन/अलसी/बड़ेवें/सरसों/सूरजमुखी
• बाइ प्रोडक्ट – गेहूं का चोकर/चावलों की पॉलिश/बिना तेल के चावलों की पॉलिश
• धातुएं – नमक, धातुओं का चूरा
सस्ते खाद्य पदार्थ के लिए खेती उदयोगिक और जानवरों के बचे कुचे का प्रयोग
• शराब के कारखानों के बचे कुचे दाने
• खराब आलू
• मुर्गियों की सूखी बीठें
किसी भी पशु को शेड में रखना अधिक फायदेमंद होता है। कालाहांडी भैंस के विकास में अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियां सहायक है। तेज धूप, बर्फबारी और अधिक ठंड जैसे मोसम में इन्हें खुले वातावरण में रखना सही नहीं है। इनके शैड में साफ हवा और पानी की सुविधा होनी चाहिए।