नई दिल्ली: हमारे देश में नकदी फसल के रूप में आलू की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। अभी कई जगह रबी की मुख्य फसल आलू की खुदाई चल रही है। लेकिन बात जब आलू की खेती की आती है तो इसमें भी कई बीमारियों और वायरस लगने का खतरा रहता है। इससे पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो सकती है।
आलू में लगने वाले वायरस:
पोटैटो वायरस एक्स (PVX): यह वायरस आलू की फसलों में किसी भी यंत्र या मशीनों के इस्तेमाल करने से फैलता है। इसके लगने पर फसलों पर माहू कीट का खतरा बढ़ जाता है, जिससे फसलों को काफी नुकसान होता है।
पोटैटो वायरस वाई (PVY): यह वायरस आलू की पत्तियों, डंठलों और कंदों को संक्रमित करता है। पौधों में इन वायरस के लगने से पौदावार में 90 प्रतिशत तक की गिरावट आती है। ये वायरस तेजी से एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलते हैं।
पोटैटो लीफरोल वायरस (PLRV): यह वायरस सफेद मक्खी द्वारा फैलता है। फसलों पर इस वायरस के लगने से पौधों की ऊपर वाली पत्तियां मुड़ जाती हैं। ये वायरस खास करके आलू की अगेती फसलों में लगता है।
आलू में वायरस से बचाव के उपाय:
बीज का उपचार: बुवाई से पहले बीज को इमिडाक्लोप्रिड 4 मिली प्रति 10 लीटर पानी के घोल में उपचारित करें।
मिट्टी चढ़ाते समय: आलू की बुवाई के बाद उस पर मिट्टी चढ़ाते समय पौधों के पास 15 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से फोरेट 10 जी डालना चाहिए।
दावा का छिड़काव: पौधे जब निकल जाएं और लगभग 1 महीने के हो जाएं तब उस पर इमिडाक्लोप्रिड 3 मिली प्रति 10 लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें। 50 दिनों की खड़ी फसल में थाईमेथक्साम का घोल बनाकर छिड़काव करें।
रोगी पौधों को हटाना: वहीं कम से कम 70 दिनों की फसल में रोगी और बेमेल पौधों को जड़ सहित उखाड़ कर फेंक दें।
अन्य महत्वपूर्ण बातें:
सफेद मक्खी और माहू कीट से फसलों का बचाव करना चाहिए।
बुवाई के लिए स्वस्थ और वायरस मुक्त बीज का उपयोग करें।
फसल की नियमित निगरानी करें और वायरस के लक्षण दिखने पर तुरंत उपचार करें।
स्वच्छता का ध्यान रखें और खेतों में उचित जल निकासी का प्रबंध करें।
आलू की फसलों में वायरस से बचाव के लिए किसानों को उपरोक्त उपायों का पालन करना चाहिए। इसके साथ ही, किसानों को कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों से भी सलाह लेनी चाहिए।