कपास भारत के कई राज्यों की महत्वपूर्ण फसल मानी जाती है, लेकिन इस साल इसके रकबे में कमी की आशंका जताई जा रही है। कृषि विशेषज्ञों और रिपोर्टों के मुताबिक, 2025-26 के सीजन में कपास की खेती में लगभग 3 फीसदी की गिरावट हो सकती है। पिछले साल भी कपास की खेती में कमी देखी गई थी, और इस साल भी किसानों का रुझान कपास से ज्यादा लाभ देने वाली फसलों, जैसे दालों और तिलहनों की तरफ बढ़ा है।
कपास का रकबा 3 प्रतिशत घटने का अनुमान
यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (USDA) ने 2025-26 के मार्केटिंग वर्ष के लिए भारत में कपास का रकबा 110 लाख हेक्टेयर रहने का अनुमान जताया है, जो पिछले साल की तुलना में 3 प्रतिशत कम है। इस गिरावट के कारण मुख्य रूप से यह बताया जा रहा है कि किसान अब कपास से ज्यादा लाभ देने वाली फसलें, जैसे दालें और तिलहन, उगाने की ओर रुख कर रहे हैं।
अखबार “द हिंदू” की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि रोपाई क्षेत्र में गिरावट देखी जा रही है, लेकिन सामान्य मॉनसून के आधार पर भारत का कपास उत्पादन 25 मिलियन 480 पाउंड गांठ तक हो सकता है। USDA ने अनुमान जताया है कि इस वर्ष कपास की औसत उपज 477 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है, जो कि वित्तीय वर्ष 2024-25 के आधिकारिक अनुमान 461 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से तीन फीसदी ज्यादा है। यह अनुमान उन क्षेत्रों के लिए है, जहां पर्याप्त सिंचाई सुविधाएं और पानी की उपलब्धता मौजूद है।
किसान बदल रहे हैं अपनी फसलों की प्राथमिकताएं
पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और दक्षिण भारत में कपास के रकबे में गिरावट की मुख्य वजह किसान का दालों, तिलहनों और अन्य फसलों की तरफ रुख करना है। पंजाब में कपास का रकबा पहले की तरह ही रहने का अनुमान है, लेकिन हरियाणा में इसमें गिरावट हो सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक, हरियाणा में इस वर्ष कपास के रकबे में 5 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है, क्योंकि किसान अब धान की खेती की ओर रुख कर रहे हैं। इसके अलावा, दोनों राज्यों में पानी का अधिक उपयोग होने के कारण कपास की उपज में भी गिरावट देखी जा सकती है।
गुजरात और राजस्थान में स्थिति
गुजरात में कपास का उत्पादन सबसे अधिक होता है, लेकिन यहां भी पिछले साल के मुकाबले 3 प्रतिशत की गिरावट हो सकती है। यहां के किसान अब दाल, मूंगफली, जीरा और तिल जैसी फसलों की खेती को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसी तरह, राजस्थान में कपास के रकबे में 2 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है। यहां भी किसान बढ़ती कीमतों के कारण ग्वार, मक्का और दालों की खेती को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं, हालांकि बेहतर कीट प्रबंधन के चलते उपज में कुछ वृद्धि हो सकती है।
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में असंतोष और बदलाव
महाराष्ट्र में पिछले साल के मुकाबले स्थिति बहुत ज्यादा बदली हुई नहीं है, लेकिन यहां के किसान सोयाबीन की कम कीमतों से असंतुष्ट हैं, जिस कारण वे फसल विविधता की ओर बढ़ रहे हैं। तूर (अरहर) दाल और मक्का अब उनके प्राथमिक विकल्प बन चुके हैं। वहीं, मध्य प्रदेश में भी कपास के रकबे में 5 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है, क्योंकि यहां भी किसान दालों और तिलहनों की तरफ रुख कर रहे हैं।
दक्षिण भारत में कपास की खेती में 7 फीसदी की गिरावट
दक्षिण भारत में कपास की खेती में सबसे अधिक गिरावट देखी जा सकती है। यहां सरकार की मजबूत योजनाओं के चलते इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे किसान कपास की जगह चावल और मक्का जैसी फसलों की खेती करने लगे हैं। इस वजह से दक्षिण भारत में कपास की खेती में 7 प्रतिशत तक की गिरावट हो सकती है।
किसान क्यों बदल रहे हैं अपनी फसलें?
किसान कपास से ज्यादा लाभ देने वाली फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं। दालों और तिलहनों की कीमतें ज्यादा हो रही हैं, जबकि कपास की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं। इसके अलावा, पानी की अधिक मांग और सिंचाई की कमी भी कपास की खेती में कमी का कारण बन रही है। इन परिस्थितियों में किसान अपनी फसलें बदलकर ज्यादा मुनाफा प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। भारत में कपास की खेती में इस साल कमी आ सकती है, लेकिन यह बदलाव किसानों की बढ़ती मांग और लाभप्रद फसलों की ओर रुख करने के कारण है। दालों, तिलहनों और अन्य फसलों की खेती को प्राथमिकता देना किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। हालांकि, कपास उत्पादन में गिरावट के बावजूद, भारत में अन्य फसलों का उत्पादन बढ़ने के कारण कृषि क्षेत्र में बदलाव आ रहा है।