नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव से पहले कृषि क्षेत्र के विकास दर में हुई गिरावट ने केंद्र सरकार के सामने बड़ी चुनौती रख दी है। भले ही विधानसभा चुनावों में राजनीतिक दलों ने किसानों को लुभाने के लिए कई तरह के वादे किए हों, लेकिन कृषि की सुस्त रफ्तार ने मोदी सरकार के लिए बड़ी समस्या उत्पन्न की है। दूसरी तिमाही में कृषि विकास दर 3.5 प्रतिशत से घटकर सिर्फ 1.2 प्रतिशत रह गई है। विकास दर की यह धीमी चाल लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के लिए एक बड़ी बाधा बन गई है।
जीडीपी या सकल घरेलू उत्पाद विकास दर को मापन करने के लिए एक महत्वपूर्ण पैमाना माना जाता है, जो दर्शाता है कि किसी अर्थव्यवस्था का कितना अच्छा या बुरा प्रदर्शन हो रहा है। जब अर्थव्यवस्था बढ़ रही होती है, तो प्रत्येक तिमाही जीडीपी का आंकड़ा पिछले तीन महीने की तुलना में थोड़ा बढ़ा होता है, लेकिन जब जीडीपी गिर रही होती है, तो इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है। कृषि क्षेत्र की गिरावट से यह साबित हो रहा है कि उत्पन्न चुनौती का सामना करना होगा।
कृषि क्षेत्र की विकास दर के ऐसे हालात तब हैं जब आर्थिक मोर्च पर देश के लिए बड़ी खुशखबरी आई है। जुलाई से सितंबर की तिमाही में सभी सेक्टरों की आर्थिक वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत रही है, जो एक साल पहले इसी तिमाही में 6.2 प्रतिशत थी। इससे यह प्रतीत हो रहा है कि कृषि क्षेत्र में हो रही गिरावट का गहरा असर देश की अर्थव्यवस्था पर हो सकता है।
कृषि क्षेत्र के ऐसे हालात तब हैं जब सरकार ने कई मौकों पर किसानों की मदद करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। हालांकि, लगभग सभी सेक्टरों में गिरावट की चुनौती के बावजूद कृषि क्षेत्र की धीमी गति से मोदी सरकार को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।