नई दिल्ली: देश के डेयरी उद्योग के सामने इन दिनों एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है – चारे की गंभीर कमी। यह समस्या अब केवल पशुपालकों तक सीमित नहीं रही, बल्कि डेयरी एक्सपर्ट्स, वैज्ञानिकों और व्यवसायिक वर्ग तक को सोचने पर मजबूर कर रही है। बदलते मौसम, चारागाह भूमि पर अवैध कब्जे और किसानों में साइलेज को लेकर जागरूकता की कमी ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है।
पशुपालन को ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। लेकिन जब पशुओं को खिलाने के लिए चारा ही न मिले, तो दूध उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है। चारे की कमी से दूध की लागत लगातार बढ़ रही है, और इसका सीधा नुकसान पशुपालकों के मुनाफे में कटौती के रूप में सामने आ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब किसी मौसम विशेष में चारे की भरमार होती है, तो न तो पशुओं को उतना चारा खिलाया जा सकता है, और न ही किसानों में स्टोरेज को लेकर पर्याप्त जानकारी होती है। साइलेज, यानी चारे को लंबे समय तक संरक्षित करने की तकनीक, अब भी गांवों और छोटे किसानों के बीच लोकप्रिय नहीं हो पाई है।
एक और गंभीर समस्या है कि देशभर में सरकारी चारागाह की जमीनों पर अवैध कब्जे हो गए हैं। जिन जमीनों पर कभी हरा चारा उगता था, आज वहां कंक्रीट या खेती हो रही है। इससे न केवल चारे का उत्पादन घटा है, बल्कि संकट की स्थिति में सरकार के पास कोई स्थायी समाधान भी नहीं बचा है। फोडर एक्सपर्ट्स का कहना है कि जून महीना हरे चारे के संरक्षण (साइलेज) के लिए सबसे मुफीद वक्त है। इस महीने ज्वार, बाजरा, मक्का और लोबिया जैसी चार प्रमुख चारा फसलों की कटाई हो रही होती है। ये सभी फसलें पौष्टिक होती हैं और दूध देने वाले पशुओं के लिए बेहद लाभकारी मानी जाती हैं।
साइलेज बनाकर न केवल खुद के लिए स्टोर किया जा सकता है, बल्कि इसे बाजार में बेचकर अतिरिक्त मुनाफा भी कमाया जा सकता है। बरसात और सर्दियों के मौसम में हरे चारे की किल्लत से निपटने के लिए अभी तैयार किया गया साइलेज बहुत मददगार साबित हो सकता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, घर पर साइलेज बनाना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है, बस थोड़ी सी सावधानी जरूरी है, जैसे: चारे की फसल को पकने से पहले काटें, जब उसमें पोषण सबसे ज्यादा हो। पतले तने जल्दी सूखते हैं और फंगस लगने की आशंका कम होती है। काटे गए चारे को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर तब तक सुखाएं जब तक उसमें 15-18% नमी रह जाए। एक उपयुक्त जगह पर प्लास्टिक के साइलो बैग या गड्ढे में भरकर इसे पूरी तरह से सील कर दें। इससे चारा महीनों तक खराब नहीं होगा।
अगर किसानों को समय पर साइलेज बनाने की तकनीक और इसके फायदे समझ आ जाएं, तो चारे की मौसमी समस्या से काफी हद तक निजात मिल सकती है। सरकार को चाहिए कि चारागाह भूमि को कब्जे से मुक्त कराएं, और साइलेज निर्माण को बढ़ावा देने के लिए ट्रेनिंग कार्यक्रम और सब्सिडी योजनाएं शुरू करें। इसके साथ ही, पशुपालकों को भी अब पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़कर आधुनिक पशु पोषण की ओर ध्यान देना होगा। चारा उत्पादन की वैज्ञानिक योजना और साइलेज जैसी तकनीकों का अधिकतम उपयोग इस संकट से बाहर निकलने का रास्ता बन सकते हैं।
देश में चारे की मौजूदा कमी केवल एक मौसमी संकट नहीं, बल्कि एक नीतिगत और व्यवहारिक चुनौती बन चुकी है। अगर समय रहते किसानों और पशुपालकों को साइलेज की जानकारी और संसाधन उपलब्ध कराए गए, तो इस संकट को अवसर में बदला जा सकता है। अन्यथा, दूध की बढ़ती लागत और घटते मुनाफे का दुष्चक्र भारतीय डेयरी उद्योग को गंभीर झटका दे सकता है।