कृषि पिटारा

मौसम की मार से जीरा बुवाई में देरी, रकबा घटने की आशंका

भारतीय रसोई के प्रमुख मसालों में से एक जीरा इस बार मौसम की वजह से मुश्किलों का सामना कर रहा है। देश के दो सबसे बड़े उत्पादक राज्य गुजरात और राजस्थान में बुवाई देरी से शुरू हुई है। बढ़े हुए तापमान और अन्य मौसम संबंधी समस्याओं ने न केवल बुवाई में बाधा डाली, बल्कि कई क्षेत्रों में फसल को भी प्रभावित किया है। हालांकि, बुवाई की अवधि बढ़ाकर 20 दिसंबर तक किए जाने की संभावना है, जिससे किसानों को थोड़ी राहत मिल सकती है।

गुजरात, जो जीरा उत्पादन में अग्रणी है, वहां इस साल अब तक केवल 57,915 हेक्टेयर में बुवाई हुई है। यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में काफी कम है, जब 2.44 लाख हेक्टेयर में जीरे की बुवाई हो चुकी थी। राज्य कृषि विभाग के अनुसार, गुजरात में जीरे के सामान्य फसल क्षेत्र 3.81 लाख हेक्टेयर है, लेकिन अब तक केवल 15 प्रतिशत हिस्से में बुवाई हुई है।

दूसरे सबसे बड़े उत्पादक राज्य राजस्थान में भी स्थिति ज्यादा बेहतर नहीं है। राज्य के प्रमुख उत्पादक जिलों जैसे जैसलमेर, नागौर, और फलोदी में अंकुरण की समस्याएं देखी गई हैं। बीज मसालों के सबसे बड़े संगठन फेडरेशन ऑफ इंडियन स्पाइस स्टेकहोल्डर्स के सचिव तेजस गांधी ने बताया कि बढ़े हुए तापमान के कारण बुवाई में 20-25 दिन की देरी हुई है। हालांकि, उन्होंने उम्मीद जताई कि राजस्थान में जीरे का रकबा बढ़ सकता है, जबकि गुजरात में यह पिछले साल के स्तर का 80-90 प्रतिशत रहने की संभावना है।

जोधपुर स्थित साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर के संस्थापक निदेशक भागीरथ चौधरी ने बताया कि बुवाई के लिए अब तापमान अनुकूल हो रहा है। जिन किसानों की फसल खराब हुई है, वे 20 दिसंबर तक दोबारा बुवाई कर सकते हैं। इसके अलावा, सौंफ और इसबगोल के कुछ उत्पादक भी जीरे की खेती की ओर रुख कर सकते हैं।

मसाला व्यापारी और जीरा निर्यातक दिनेश सोनी ने बताया कि जीरे की फसल को लंबे समय तक सर्दी का लाभ मिल सकता है, जिससे गुणवत्ता और उत्पादन बेहतर हो सकता है। बाजार में जीरे की कीमतों में भी उतार-चढ़ाव जारी है। बुधवार को एनसीडीईएक्स पर मार्च 2025 के जीरा अनुबंध में 2% की गिरावट दर्ज की गई और यह 24,720 रुपये पर पहुंच गया। हाजिर बाजार में कीमतें 24,881 रुपये के आसपास रहीं।

भारत का जीरा उत्पादन 2023-24 में 11.87 लाख हेक्टेयर क्षेत्र से बढ़कर 8.6 लाख टन हो गया है, जो पिछले साल के 5.77 लाख टन के मुकाबले अधिक है। हालांकि, इस साल मौसम के कारण रकबे और उत्पादन पर प्रभाव पड़ने की आशंका है। विशेषज्ञों का मानना है कि अनुकूल मौसम और सर्दी में बढ़ोतरी से जीरे की फसल को मजबूती मिल सकती है। लेकिन अभी उत्पादन और कीमतों पर स्पष्ट तस्वीर दिसंबर के अंत तक ही उभर पाएगी।

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