पटना: बिहार में मखाने की मांग दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, और इसे सुपरफूड के रूप में अपनी पहचान मिल चुकी है। पिछले साल बिहार के मखाना किसानों को अपनी फसल का अच्छा दाम मिला था, जिससे वे काफी खुश थे। हालांकि, हर साल ऐसे अच्छे दाम मिल पाना किसानों के लिए मुश्किल हो सकता है, क्योंकि मखाना की कीमतों का निर्धारण हर बार व्यापारी करते हैं। इसी को लेकर बिहार के राज्यसभा सांसद और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के कार्यकारी अध्यक्ष, संजय कुमार झा ने हाल ही में राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान मखाना के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करने की मांग उठाई है।
किसानों का कहना है कि यदि मखाना की खरीदारी सरकारी दर पर हो, तो उन्हें उचित मूल्य मिल सकेगा। वर्तमान में व्यापारियों के हिसाब से मखाना की कीमत तय होती है, जिससे किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य नहीं मिल पाता। संजय कुमार झा ने राज्यसभा में इस मुद्दे को उठाते हुए केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह मखाना के लिए एक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) घोषित करे। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि मखाने की खरीदारी सहकारी संस्थाओं के माध्यम से की जाए ताकि बिचौलियों का हस्तक्षेप कम किया जा सके।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में बिहार में मखाना बोर्ड गठित करने की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य मखाना की खेती, प्रोसेसिंग और विपणन को बेहतर बनाना है। इसके बाद, सांसद संजय कुमार झा ने मखाना के एमएसपी को लेकर अपनी आवाज उठाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार अपने भाषणों में मखाने के फायदों का जिक्र कर चुके हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि केंद्र सरकार इस मामले में गंभीर हो सकती है।
राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान संजय कुमार झा ने कहा कि मखाना उत्पादन और प्रोसेसिंग से बिहार के 5 लाख से अधिक परिवार जुड़े हुए हैं, जिनमें ज्यादातर मल्लाह, सहनी और अति पिछड़ा समाज के लोग शामिल हैं। अगर मखाना की खरीदारी एमएसपी पर होती है, तो इन परिवारों के जीवन में खुशहाली आ सकती है। उन्होंने केंद्र सरकार से यह भी अनुरोध किया कि मखाना की खेती को फसल बीमा के तहत लाया जाए, ताकि किसानों को वित्तीय सुरक्षा मिल सके और वे प्राकृतिक आपदाओं या अन्य जोखिमों से बच सकें। हालांकि, वर्तमान में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बिहार में लागू नहीं है।
पैक्स अध्यक्ष और किसान धीरेंद्र कुमार का कहना है कि यदि सरकार मखाना की खरीदारी खुद करे तो बिचौलियों पर अंकुश लगेगा। वर्तमान में व्यापारी ही मखाना के दाम तय करते हैं, जिससे किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। अगर एमएसपी तय किया जाता है, तो मखाना के दाम में अस्थिरता कम होगी और किसानों को एक स्थिर और उचित मूल्य मिल सकेगा।
किसान महेश मुखिया का कहना है कि यदि सरकार मखाना को एमएसपी पर खरीदने का निर्णय लेती है, तो यह किसानों के लिए बेहद फायदेमंद होगा। उन्होंने बताया कि वर्तमान में मखाना के दामों में उतार-चढ़ाव काफी ज्यादा देखने को मिलता है, और व्यापारी अपने फायदे के अनुसार मखाना की कीमत तय करते हैं, जिससे किसानों को नुकसान होता है। मखाना की कीमतों में बदलाव मुख्यतः मखाने के बीज, यानी गुरिया के दामों में उतार-चढ़ाव से संबंधित होते हैं।
पिछले तीन वर्षों में मखाना के बीज (गुरिया) के दामों में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। उदाहरण के लिए, 2022-23 में अधिक उत्पादन के कारण मखाना का गुरिया 5,000 रुपये प्रति क्विंटल बिका था, जबकि 2023-24 में यह बढ़कर 18,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। 2024-25 में मखाना का गुरिया 35,000 से 40,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है। इस उतार-चढ़ाव के कारण मखाना की कीमतों में वृद्धि देखी गई है, जो किसानों के लिए चिंता का विषय बन सकती है। अगर एमएसपी तय किया जाता है, तो बाजार में दामों को लेकर कोई अस्थिरता नहीं होगी, और किसानों को स्थिर मूल्य मिल सकेगा।
अगर केंद्र सरकार मखाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करती है, तो यह बिहार के किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इससे किसानों को सही और स्थिर मूल्य मिलेगा, और मखाना की खेती में भी वृद्धि हो सकती है। इसके साथ ही, यह कदम बिचौलियों की भूमिका को भी खत्म करेगा, जिससे किसानों को मखाने की उचित कीमत मिल सकेगी। किसानों का कहना है कि यह समय है जब सरकार को मखाने के लिए सही कदम उठाकर किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य देने का अवसर प्राप्त होना चाहिए।