कृषि समाचार

खरीफ सीजन में डीएपी की कमी से बढ़ी एनपीके की मांग, राजस्थान के किसानों को मिल रहा संतुलित उर्वरक

जयपुर: खरीफ सीजन की शुरुआत के साथ ही देशभर के किसान खेतों की तैयारियों में जुट गए हैं। इस समय खेती में खादों की मांग तेजी से बढ़ रही है, खासकर फास्फेटिक उर्वरकों की। राजस्थान के कई जिलों में ग्राम सभा सहकारी समितियों पर किसानों की भीड़ देखी जा रही है, जहां सबसे ज्यादा मांग डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) और एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश) खादों की हो रही है। हालांकि इस बार प्रदेश में डीएपी की उपलब्धता सीमित है, जिसे देखते हुए कृषि अधिकारियों और उर्वरक कंपनियों ने एनपीके को वैकल्पिक समाधान के रूप में उपलब्ध कराया है।

कृभको (KRIBHCO) के हनुमानगढ़ क्षेत्र प्रतिनिधि राजेश गोदारा ने बताया कि वर्तमान में डीएपी की उपलब्धता कम है, जबकि एनपीके की सप्लाई को बढ़ाया जा रहा है ताकि किसानों को समय पर खाद मिल सके और फसल की वृद्धि प्रभावित न हो। उन्होंने किसानों को यह जानकारी भी दी कि डीएपी भी एक तरह का एनपीके ही है, जिसमें 18 प्रतिशत नाइट्रोजन और 46 प्रतिशत फास्फोरस होता है, लेकिन पोटाश नहीं होता। इसके उलट बाजार में उपलब्ध एनपीके उर्वरक संतुलित रूप में तीनों प्रमुख पोषक तत्वों को प्रदान करता है।

एनपीके एक संतुलित उर्वरक माना जाता है जिसमें नाइट्रोजन पौधों की वानस्पतिक वृद्धि में मदद करता है, फास्फोरस जड़ों के विकास के लिए जरूरी होता है और पोटाश फसल को बीमारियों से बचाने में भूमिका निभाता है। राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर, हनुमानगढ़ और चुरू जैसे जिलों में कृभको द्वारा एनपीके 10-26-26 ग्रेड की आपूर्ति की जा रही है, जिसमें 10 प्रतिशत नाइट्रोजन, 26 प्रतिशत फास्फोरस और 26 प्रतिशत पोटाश होता है। यह उर्वरक विशेष रूप से उन फसलों के लिए उपयोगी है जिन्हें पोटाश की अधिक आवश्यकता होती है।

राज्य के कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, कपास की फसल में पोटाश की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। पोटाश की कमी से कपास में बीमारियां जल्दी लगती हैं, इसलिए किसानों को सलाह दी जा रही है कि वे डीएपी के बजाय एनपीके 10-26-26 का उपयोग करें, जिसमें पोटाश की पर्याप्त मात्रा मौजूद होती है और अलग से पोटाश देने की आवश्यकता नहीं होती। इसी तरह, खरीफ सीजन में मूंग की खेती भी बड़े पैमाने पर होती है। मूंग एक लेग्युम फसल है जो स्वयं ही नाइट्रोजन फिक्स करती है, इस कारण इसमें अधिक नाइट्रोजन देने से फसल की बढ़वार तो हो सकती है, लेकिन फलियों की संख्या घट जाती है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि मूंग में संतुलित मात्रा में ही उर्वरक देना चाहिए और इसके लिए भी कृभको का 10-26-26 एनपीके उपयुक्त विकल्प है।

राजस्थान में इस बार कृषि विभाग और उर्वरक कंपनियां मिलकर खाद की मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने की कोशिश में जुटी हैं। डीएपी की सीमित उपलब्धता को देखते हुए किसानों को एनपीके जैसे विकल्पों की ओर मोड़ा जा रहा है, ताकि फसलों की उपज और गुणवत्ता दोनों में सुधार हो सके। किसानों को जागरूक किया जा रहा है कि वे फसलों की जरूरत और मिट्टी की स्थिति के आधार पर उर्वरक का चयन करें और अंधाधुंध डीएपी पर निर्भर न रहें।

खरीफ सीजन की शुरुआत में ही यदि किसान संतुलित खादों का सही उपयोग करें, तो उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ मिट्टी की सेहत को भी बेहतर बनाया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बदलते मौसम और भूमि की गिरती उर्वरता को देखते हुए अब समय आ गया है कि किसान पारंपरिक उर्वरकों के साथ-साथ संतुलित विकल्पों को अपनाएं।

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