नई दिल्ली: कृषि मंत्रालय की मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत 2024-25 के फसली मौसम में टर दाल की रिकॉर्ड खरीद हुई है, लेकिन इसके बावजूद मंडी में टर की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से काफी नीचे बनी हुई हैं। यह स्थिति दो वर्षों बाद पहली बार टर दाल की कीमतों में गिरावट का साफ संकेत देती है। फिलहाल मंडी में टर की कीमत लगभग 6600 रुपये प्रति क्विंटल पर बनी हुई है, जबकि MSP 7550 रुपये प्रति क्विंटल है। वहीं, म्यांमार और अफ्रीकी देशों से आयातित टर की कीमतें 5600 से 6220 रुपये प्रति क्विंटल के बीच आंकी गई हैं, जो घरेलू बाजार की कीमतों से भी कम हैं।
सरकारी एजेंसियां जैसे नाफेड और NCCF ने महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात जैसे प्रमुख राज्यों से कुल 0.59 मिलियन टन टर की खरीद की है, जो 2017-18 के बाद सबसे अधिक मात्रा है। इसके बावजूद, निरंतर हो रहे आयात और घरेलू उत्पादन में वृद्धि के कारण बाजार में टर दाल की कीमतों पर दबाव बना हुआ है। पिछले दो सालों में टर का उत्पादन कम होने की वजह से मंडी में इसकी कीमतें 9000 से 10,000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच थीं, जो MSP से काफी ऊपर थीं। उस दौरान सरकार पर्याप्त खरीद नहीं कर पाई थी, जिससे भंडार बढ़ाने में कमी आई। कंज्यूमर अफेयर्स विभाग के मूल्य निगरानी सेल के आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2025 में टर की रिटेल कीमत 160 रुपये प्रति किलोग्राम थी, जो अप्रैल में घटकर 120 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गई है। इसी वजह से टर की खुदरा महंगाई दर अप्रैल में -9.84% तक पहुंच गई है।
कृषि मंत्रालय ने इस साल टर के उत्पादन का तीसरा अग्रिम अनुमान 3.56 मिलियन टन लगाया है, जो पिछले वर्ष 3.41 मिलियन टन से अधिक है। ट्रेडर्स का मानना है कि 2024-25 में टर का उत्पादन पिछले साल से 10 से 15 प्रतिशत अधिक हो सकता है। इसके साथ ही भारत ने म्यांमार, मोजाम्बिक, मलावी और तंजानिया जैसे देशों से 1.1 मिलियन टन से अधिक टर आयात किया है। किफायती कीमतों पर टर की उपलब्धता बनाए रखने के लिए सरकार ने आयात नीति को मार्च 2026 तक बढ़ा दिया है।
कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि किसानों को प्रोत्साहित करने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार ने 2024-25 के लिए टर, उड़द और मसूर की 100% राज्य उत्पादन के आधार पर खरीद को मूल्य समर्थन योजना के तहत मंजूरी दी है। इसका उद्देश्य घरेलू उत्पादन बढ़ाकर बाजार में स्थिरता लाना और किसानों को बेहतर समर्थन देना है। इस स्थिति से स्पष्ट होता है कि टर दाल की कीमतों में गिरावट घरेलू उत्पादन वृद्धि और आयात की संयुक्त भूमिका के कारण हुई है, जबकि सरकार निरंतर खरीद और सब्सिडी के जरिए किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को राहत पहुंचाने का प्रयास कर रही है।