नई दिल्ली: धान एक ऐसी फसल है जो पानी की अधिकता वाले क्षेत्रों में उगाई जाती है। इस फसल को पूरे विकास के दौरान पर्याप्त मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। यदि समय पर वर्षा न हुई तो इसकी सिंचाई में काफी खर्च वहन करना पड़ता है। इस वजह से धान की खेती भी कम जोखिम वाली नहीं है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ आजकल मॉनसून की अनिश्चितता देखने को मिल रही है। धान की खेती में एक अन्य जोखिम विभिन्न प्रकार के रोगों के आक्रमण का होता है। यदि समय पर रोगों को नियंत्रित ना किया जाए तो उनका सीधा प्रभाव पैदावार पर पड़ता है। कई बार तो धान की पैदावार में पचास प्रतिशत तक की कमी देखने को मिलती है।
किसान मित्रों, धान की फसल में मुख्य रूप से खैरा रोग, झोंका रोग, जीवाणु धारी रोग और पत्तियों पर भूरे धब्बे बन जाने का खतरा रहता है। इन सभी रोगों से बचाव के लिए आप निम्न उपाय अपना सकते हैं:
गर्मी में खेत की गहरी जुताई कर मेढ़ों तथा खेत के आसपास के क्षेत्र को खरपतवार से जहाँ तक हो सके मुक्त रखें।
उचित समय पर रोग प्रतिरोधक प्रजातियों के मानक बीजो की बुआई करें।
बिजाई से पहले क्षेत्र विशेष के समयानुसार बीजशोधन ज़रूर करें।
झुलसा जीवाणु की समस्या वाले क्षेत्रों में 25 किलोग्राम बीज के लिए 38 ग्राम ई.एम.सी. तथा 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन को 45 लीटर पानी में रात भर भिगो दें। फिर दूसरे दिन छाया में सुखाकर नर्सरी डालें।
बीजों को रोगमुक्त रखने के लिए 3 ग्राम थाइरम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें।
नर्सरी, सीधी बुवाई अथवा रोपाई के बाद खैर रोग के लिए एक सुरक्षात्मक छिड़काव करें। 5 किलोग्राम ज़िंक सल्फेट को 20 किलोग्राम यूरिया के साथ 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टर की दर से एक हफ्ते बाद छिड़काव करें।
यदि फसल में सफेद रोग के लक्षण दिखें तो इसके नियंत्रण के लिए 5 किग्रा० फेरस सल्फेट को 20 किग्रा० यूरिया के साथ 700 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करें।