खेती-किसानी

ड्रिप इरिगेशन: जल संरक्षण और अधिक उत्पादन की एक कारगर विधि

नई दिल्ली: ड्रिप इरिगेशन, जिसे हिंदी में टपक सिंचाई प्रणाली कहा जाता है, आज की आधुनिक और जल संरक्षण को ध्यान में रखने वाली एक अत्यंत उपयोगी सिंचाई तकनीक है। यह प्रणाली मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में बेहद कारगर मानी जाती है जहां पानी की उपलब्धता सीमित है या जहां सिंचाई के पारंपरिक तरीकों से पानी की काफी बर्बादी होती है। इस प्रणाली में पानी को पाइपों और ड्रिपर के माध्यम से बूंद-बूंद कर सीधे पौधों की जड़ों तक पहुँचाया जाता है। इससे न केवल पानी की बचत होती है, बल्कि पौधों को उनकी आवश्यकता के अनुसार नमी भी लगातार मिलती रहती है, जिससे उनकी वृद्धि और उत्पादन बेहतर होता है।

ड्रिप इरिगेशन में पानी को नियंत्रणपूर्वक और न्यूनतम दबाव में खेतों तक पहुँचाया जाता है, जिससे सिंचाई करते समय सतह से पानी के वाष्पीकरण और बहाव की समस्या नहीं होती। पारंपरिक बाढ़ सिंचाई के मुकाबले ड्रिप इरिगेशन से लगभग 30 से 70 प्रतिशत तक पानी की बचत संभव है। यह तकनीक उन किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है, जो पानी की कमी से जूझ रहे हैं या जो मृगजल यानी ग्राउंड वॉटर पर निर्भर हैं।

इस प्रणाली की एक बड़ी खासियत यह है कि इससे पौधों को समान रूप से पानी और पोषक तत्व मिलते हैं। किसान इसमें तरल खाद को भी पाइप के जरिये पानी के साथ पौधों तक पहुँचा सकते हैं, जिससे खाद की खपत कम होती है और फसल की गुणवत्ता बनी रहती है। इसके अलावा ड्रिप सिंचाई से खेत में खरपतवार कम उगते हैं, क्योंकि केवल पौधों की जड़ों तक ही पानी पहुँचता है, जिससे मिट्टी की ऊपरी सतह सूखी रहती है।

भारत जैसे देश में, जहां बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है और जल संकट तेजी से बढ़ रहा है, वहां ड्रिप इरिगेशन एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। खासकर सूखा प्रभावित या अल्प वर्षा वाले राज्यों में यह तकनीक खेती को टिकाऊ और लाभकारी बनाने में मदद कर रही है। ड्रिप इरिगेशन का प्रयोग आज टमाटर, मिर्च, प्याज, अंगूर, अनार, केला, गन्ना, कपास जैसी फसलों के साथ-साथ बागवानी और फूलों की खेती में भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।

सरकारें भी इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही हैं। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जैसे कार्यक्रमों के तहत किसानों को ड्रिप सिस्टम लगाने पर 50 से 90 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती है। इससे किसानों को शुरुआती लागत में सहायता मिलती है और वे इस प्रणाली को अपनाने के लिए आगे आते हैं।

हालांकि, ड्रिप इरिगेशन की अपनी चुनौतियाँ भी हैं। इसकी स्थापना की शुरुआती लागत पारंपरिक सिंचाई के मुकाबले अधिक होती है। इसके साथ ही, इसका नियमित रखरखाव और सफाई आवश्यक होती है, वरना ड्रिपर चोक हो सकते हैं और प्रणाली निष्प्रभावी हो जाती है। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी तकनीकी जानकारी की कमी एक बड़ी बाधा बनी हुई है, जिसे प्रशिक्षण और जागरूकता से दूर किया जा सकता है।

ड्रिप इरिगेशन न केवल एक सिंचाई तकनीक है, बल्कि यह खेती को स्मार्ट और संसाधन-संवेदनशील बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम भी है। जल संकट के इस युग में, यदि किसान इस प्रणाली को सही ढंग से अपनाएं, तो वे कम पानी में अधिक और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। यह न केवल उनकी आमदनी बढ़ाएगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए जल-संरक्षण का मजबूत आधार भी तैयार करेगा।

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