नई दिल्ली: भारत में कृषि क्षेत्र के विकास के लिए नई तकनीकों की आवश्यकता है, और इसमें से एक है ‘ड्रिप इरिगेशन’। ड्रिप इरिगेशन को अपनाने से किसानों को पानी की बचत करने में मदद मिलती है और फसलों को समान मात्रा और ज़रूरत के अनुसार सिंचाई का पानी प्राप्त होता है। ड्रिप इरिगेशन एक सुस्त और स्थायी सिंचाई सिस्टम है जो वृष्टि के कमी के क्षेत्रों के लिए विशेषकर प्रभावी है। यह सिस्टम ट्यूब्स और पाइप्स के माध्यम से पानी को सीधे पौधों तक पहुंचाता है, जिससे पानी की बर्बादी नहीं होती है। साथ ही, इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि प्रति पौध को आवश्यक पानी की मात्रा मिले और पानी का अत्यधिक उपयोग नहीं हो रहा है, जिससे उपज की गुणवत्ता बनी रहती है।
ड्रिप इरिगेशन से प्राथमिकता से पानी का उपयोग किया जाता है, जिससे संकटकाल में भी सही तरीके से सिंचाई हो सकती है। इस सिस्टम से खेतों में पानी की बचत होती है, जिससे खाद्य सुरक्षा में सुधार होता है और खेती पर्यावरण के लिए अनुकूल होती है। सुधारित सिंचाई व्यवस्था के कारण किसानों को अधिक समय मिलता है जिसे वे अन्य कृषि गतिविधियों में लगा सकते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होती है।
ड्रिप इरिगेशन को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं को मजबूत करना होगा। साथ ही, किसानों को इस तकनीक के लाभों के प्रति जागरूक करना होगा ताकि वे इसे अपना सकें। सरकार को अनुसंधान और प्रशिक्षण के क्षेत्र में निवेश करना चाहिए ताकि ड्रिप इरिगेशन को लागू करने के लिए कदम उठा सके। स्थानीय स्तर पर किसानों को इस तकनीक का उपयोग करने के लिए किसान समूहों को बढ़ावा देना चाहिए। यही नहीं, स्थानीय स्तर पर योजनाओं को अनुसरण करने वाली स्थानीय प्रशासनिक एकाइयों को बढ़ावा देना चाहिए ताकि इस सिस्टम के लाभ को अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाया जा सके।
ड्रिप इरिगेशन को बढ़ावा देना एक उन्नत और प्रभावी सिंचाई विधि की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो खेती को तकनीकी रूप से सुधार सकता है। इसे सार्थक बनाने के लिए सरकार, कृषि विशेषज्ञ और स्थानीय किसानों के साथ मिलकर काम करना होगा, ताकि ड्रिप इरिगेशन को सफलता से लागू किया जा सके और भारतीय कृषि को सुरक्षित और सतत बनाए रखा जा सके।