नई दिल्ली: खेती की पारंपरिक विधियों के साथ जल संकट और लागत की बढ़ती चुनौतियों ने किसानों को आधुनिक सिंचाई तकनीकों की ओर मोड़ दिया है। इनमें से “ड्रिप और स्प्रिंकलर” सिंचाई प्रणाली आज की खेती में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाली दो प्रमुख तकनीकें हैं। ये न केवल पानी की बचत करती हैं बल्कि उत्पादन को भी बढ़ाती हैं और खेत की उर्वरता को बनाए रखती हैं।
ड्रिप सिंचाई प्रणाली में पानी पाइपों के ज़रिए पौधों की जड़ों तक बूंद-बूंद करके पहुँचाया जाता है। इससे पानी की एक-एक बूंद का अधिकतम उपयोग होता है और वाष्पीकरण या बहाव के कारण होने वाला नुकसान नहीं होता। यह तकनीक विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए उपयोगी है जहां पानी की उपलब्धता सीमित है या मिट्टी पानी रोकने में सक्षम नहीं है। ड्रिप सिस्टम में उर्वरकों को भी पाइपलाइन से सीधे पौधों तक पहुंचाया जा सकता है, जिससे खाद की खपत भी कम होती है।
वहीं स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली खेत में बारिश जैसी बौछार कर फसलों को सींचने का काम करती है। इस तकनीक में पाइपों के साथ जुड़े नोज़ल्स से पानी हवा में छिड़कता है और यह फसलों पर समान रूप से गिरता है। स्प्रिंकलर प्रणाली उन फसलों के लिए बेहतर मानी जाती है जिनमें ऊपर से पानी देना जरूरी होता है, जैसे गेहूं, आलू, मक्का आदि। इससे न सिर्फ पानी की बचत होती है बल्कि मिट्टी की ऊपरी परत भी सुरक्षित रहती है।
इन दोनों तकनीकों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे जल संरक्षण को बढ़ावा देती हैं और बिजली की भी बचत करती हैं, क्योंकि इनकी सिंचाई क्षमता पारंपरिक विधियों से कहीं ज्यादा सटीक और कुशल होती है। भारत सरकार भी इन तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए “प्रति बूंद अधिक फसल” अभियान और सब्सिडी योजनाओं के माध्यम से किसानों को प्रेरित कर रही है। ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीकें आज की जरूरत हैं, खासकर बदलते मौसम, सूखा और घटते भूजल स्तर की स्थिति में। यदि इनका सही तरह से उपयोग किया जाए, तो यह भारत को जल संकट से उबारने और किसानों की आमदनी बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।