कृषि पिटारा

जलवायु परिवर्तन के चलते आम की फसल पर मंडरा रहा ‘रेड बेंडेड मैंगो कैटरपिलर’ का खतरा: उत्तर बिहार के किसानों की बढ़ी चिंता

पटना: जलवायु परिवर्तन का असर अब सिर्फ तापमान या वर्षा तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसका प्रभाव अब कृषि क्षेत्र पर भी गहराई से पड़ने लगा है। मौसम के बदलते मिजाज के कारण खेती करना किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। उत्तर बिहार के कई जिलों में इस समय आम की फसल पर ‘रेड बेंडेड मैंगो कैटरपिलर’ नामक कीट का गंभीर प्रकोप देखा जा रहा है, जिससे आम की पैदावार और गुणवत्ता दोनों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।

आम के फलों पर मंडरा रहा गंभीर खतरा

इस कीट का असर विशेष रूप से मटर के आकार के फलों पर देखा जा रहा है। यह कीट फलों के पकने से पहले तक सक्रिय रहता है और आम के निचले हिस्से को अंदर से खा जाता है, जिससे फल सड़ने लगते हैं या समय से पहले झड़ जाते हैं। यह कीट सिर्फ आम पर ही हमला करता है, किसी अन्य फल को इससे कोई खतरा नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार, पूर्व में इस कीट के प्रकोप से कई क्षेत्रों में 42% तक फलों में छेद देखे गए हैं।

2014 के बाद बिहार में पहचान

इस कीट की पहली पहचान ओडिशा के पुरी जिले में वर्ष 1952 में हुई थी। बाद में यह आंध्र प्रदेश होते हुए ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड से होकर बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों तक फैल गया। उत्तर बिहार के मोतिहारी, बेतिया, वैशाली, मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर जैसे जिलों में वर्ष 2016–17 से इस कीट की उपस्थिति दर्ज की गई है। दक्षिण बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसका प्रभाव अपेक्षाकृत कम है।

कब होता है इसका प्रकोप?

यह कीट आम के पेड़ों पर फूल आने के बाद वयस्क अवस्था में आकर अंडे देता है। मसूर के आकार से लेकर फल के पकने की प्रारंभिक अवस्था तक यह कीट सक्रिय रहता है। यदि समय रहते इसका नियंत्रण न किया जाए, तो यह तेजी से फैल सकता है।

पहचान कैसे करें?

इस कीट के हमले की पहचान करना भी बेहद ज़रूरी है। आम के मटर जैसे छोटे फलों के निचले हिस्से में एक छोटा छेद दिखता है, जहां से हल्की बूंदें निकलती हैं जो बाद में गोंद की तरह जम जाती हैं। कीट का लार्वा इसी छेद से फल के भीतर घुसता है और अंदर से नुकसान पहुंचाकर दूसरे फलों पर भी हमला करता है। प्रभावित फल या तो झड़ जाते हैं या समय से पहले गल जाते हैं। पकने के समय यह कीट पेड़ की छाल, पत्तों या डाली में छिपकर निष्क्रिय हो जाता है और अगले वर्ष फिर सक्रिय होता है।

किसानों के लिए सुझाव और रोकथाम के उपाय

जिन बागों में पिछले साल इस कीट का प्रकोप था, वहां सतर्कता बरतना जरूरी है। आम के मसूर आकार के फल आने पर पहला कीटनाशक छिड़काव किया जाना चाहिए। नीचे गिरे फलों को समय-समय पर नष्ट करें क्योंकि कीट का लार्वा उनमें मौजूद हो सकता है। डेल्टामेथ्रीन 2.8 ईसी (0.5 मि.ली./लीटर पानी) या लैम्ब्डा-सायहलोथ्रिन 5 ईसी (1 मि.ली./लीटर पानी) का छिड़काव बदल-बदल कर करें। चूंकि यह कीट रात में ज्यादा सक्रिय होता है, इसलिए शाम को दवा का छिड़काव करें।

किसानों की ओर से वैकल्पिक उपाय

स्थानीय किसानों ने बताया कि वे कई बार दवा विक्रेताओं की सलाह पर इमामेक्टिन बेंजोएट (0.5 ग्राम/लीटर), क्लोरोपाइरीफोस (2 मि.ली./लीटर), या प्रोफेनोफॉस (1.5 मि.ली./लीटर) का भी छिड़काव करते हैं। हालांकि सितंबर 2024 से आम की फसल पर मोनोकोटोफॉस और मैलाथियान जैसे रसायनों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया है।

जलवायु परिवर्तन की चुनौती और उसके कारण पनप रहे कीटों से निपटना अब किसानों के लिए एक सतत संघर्ष बनता जा रहा है। ऐसे में वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों की सलाह को मानते हुए समय पर नियंत्रण करना ही एकमात्र उपाय है जिससे फसलों को बचाया जा सकता है। यदि इस कीट पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो यह आम की उत्पादकता और किसानों की आजीविका दोनों को नुकसान पहुंचा सकता है।

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