नई दिल्ली: आलू एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में उगाई जाती है। आलू की फसल को कई तरह के रोगों से ग्रसित होने का खतरा रहता है, जिससे फसल को नुकसान हो सकता है। आलू की फसल में सबसे ज्यादा नुकसान पछेती झुलसा रोग से होता है। यह फसल को 60-90 प्रतिशत तक नष्ट कर सकता है। इसके अतिरिक्त, आलू में अगेती झुलसा रोग का भी प्रकोप देखने को मिलता है, जो फसल को बहुत नुकसान पहुंचा सकता है। इन रोगों को रोकने और नियंत्रित करने के लिए, हमें इनकी पहचान करनी चाहिए, क्योंकि अगर हमें इनके बारे में पता नहीं होगा, तो हम इनसे बच नहीं पाएंगे।
आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग का प्रकोप तब होता है, जब ठंडी हवा चलती है, बादल छाए रहते हैं और कोहरा आता है। यह रोग अगर समय पर रोका नहीं जाता है, तो यह पूरी फसल को तबाह कर सकता है। यह रोग तब फैलता है, जब वातावरण में नमी 80 प्रतिशत से ज्यादा हो, रोशनी कम हो, तापमान 100-200 सेल्सियस हो और बारिश होती रहे।
यह रोग एक कवक के कारण होता है, जिसका नाम फाइटोप्थोरा है। यह कवक आलू के पत्ते, डाली और कंद को प्रभावित करता है। इस रोग के शुरुआत में, पत्तों के किनारों पर पीले रंग के गीले धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में काले या भूरे हो जाते हैं। फिर, पत्तों की डंठल पर भी भूरे धब्बे आ जाते हैं और पौधे सूखने लगते हैं। इससे पौधों से काफी बुरी बदबू आती है और दूर से ऐसा लगता है मानो फसल में आग लग गई है। इसके अलावा आलू के कंद पर लाल या भूरे रंग का एक सूखी परत जम जाती है, जो कंद के अंदर और गूदे में फैल जाती है। इससे गूदा का रंग गहरा भूरा हो जाता है।
पछेती झुलसा दिसंबर के अंत से जनवरी के शुरूआत में लग सकता है। इस समय आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग लग सकता है। पछेती झुलसा आलू के लिए ज्यादा नुकसानदायक होता है। इस बीमारी में पत्तियां किनारे व शिरे से झुलसना प्रारम्भ होती है। जिसके कारण पूरा पौधा झुलस जाता है। पौधों के ऊपर काले-काले चकत्ते दिखाई देते हैं जो बाद में बढ़ जाते हैं। जिससे कंद भी प्रभावित होता है। जबकि अगेती झुलसा दिसंबर महीने की शुरुआत में लगता है। अगेती झुलसा में पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं। सर्वप्रथम नीचे की पत्तियों पर संक्रमण होता है जहाँ से रोग ऊपर की ओर बढ़ता है। जिनमें बाद में चक्रदार रेखाएं दिखाई देती है। उग्र अवस्था में धब्बे आपस में मिलकर पत्ती को झुलसा देते हैं। इसके प्रभाव से आलू छोटे व कम बनते हैं।
बदली के मौसम एवं वातावरण में नमी होने पर आलू का झुलसा रोग उग्र रूप धारण कर लेता है। चार से छह दिन में ही फसल बिल्कुल नष्ट हो जाती है। दोनों प्रकार की झुलसा बीमारी के प्रबंधन के लिये मौसम एवं फसल की निगरानी करते रहना चाहिये। जिन फसलों पर अभी तक पिछेती झुलसा बीमारी प्रकट नही हुई है। उन पर मैंकोजेब, प्रोपीनेव, क्लोरोथेलोनीलयुक्त फफूंदनाशक एक किलोग्राम को 400 लीटर पानी मे घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब छिड़काव करें। जैसे ही बादल आए तुरंत दवाओं का छिड़काव करना चाहिए। ध्यान रखें कि एक ही फफूँदीनाशक का छिड़काव बार-बार न करें। छिड़काव करते समय नाजिल फसल की नीचे की तरफ से ऊपर की तरफ करके भी छिड़काव करे जिससे पौधे पर फफूँदनाशक अच्छी तरह पड़ जाए।