कृषि पिटारा

फसल को सूत्रकृमि से बचाने के लिए अपनाएँ ये उपाय

नई दिल्ली: सूत्रकृमि एक ऐसा कीट है जो कई फसलों को भारी नुकसान पहुंचाता है। यदि समय पर इसकी रोकथाम ना की जाए तो उपज में काफी कमी देखने को मिलती है। फसल चाहे रबी की हो, खरीफ की हो या फिर फल-सब्जियों की, सूत्रकृमि हर फसल के लिए अलग-अलग प्रजाति के होते हैं। फसल की बुआई में दोहराव करने पर ये और भी ताक़तवर हो जाते हैं और पहले के मुकाबले फसल को और अधिक नुकसान पहुंचाने लगते हैं। सबसे पहले ये पौधों की जड़ों में प्रवेश करते हैं और वहां से होते हुए पौधे के तनों, पत्तों और फलों तक को प्रभावित करते हैं। सूत्रकृमि की पहचान पौधे की जड़ों में पड़ने वाली गांठों से की जा सकती है। इसके प्रभाव से पत्ते भी पीले पड़ने लग जाते हैं। इससे पौधे न तो ठीक से पनप पाते हैं और ना ही पूरी उपज दे पाते हैं।

विश्व में अबतक लगभग 150 प्रकार के सूत्रकृमि पाए गए हैं। गेहूं और जौ को नुकसान पहुंचाने वाले एंट्रोडेरोएविनी नामक सूत्रकृमि की सबसे पहले राजस्थान के नीमकाथाना में पहचान हुई थी। इसकी मादा सूत्रकृमि अपने 20-22 दिन के जीवन काल के अंतिम समय में जड़ों के पास लगभग ढाई सौ अंडे देती है। इस तरह इनकी संख्या बढ़ती रहती है। ये जमीन में 6 से 9 इंच नीचे तक पाए जाते हैं।

सूत्रकृमि आकार के मामले में धागे से भी पतले होते हैं। इन्हें खुली आँखों से देखना संभव नहीं है। इसलिए किसी भी फसल पर इनके प्रकोप का पता तब चलता है जब वे उस फसल पर अपना प्रभाव जमा चुके होते हैं और फसल को नुकसान पहुँचना शुरू हो चुका होता है। सूत्रकृमि से मुक्ति पाने का सबसे अच्छा तरीका है कि गर्मी के मौसम में एक फुट वाले हल या तवी से खेत की जुताई की जाए। इससे नीचे की मिट्‌टी ऊपर जाएगी और ऊपर की मिट्टी नीचे। इसके बाद सूर्य की किरणें मिट्टी पर पड़ेंगी। इस तरह की एक जुताई से 30 प्रतिशत तक सूत्रकृमि ऊपर आकर गर्मी से खत्म हो जाएंगे। इस प्रक्रिया को 15-15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 बार ज़रूर दोहराएँ। ऐसा कर सूत्रकृमि से से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है।

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