सरसों की खेती में सही सिंचाई का विशेष महत्व है, क्योंकि जल की कमी से फसल की पैदावार पर असर पड़ सकता है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि सरसों की बुवाई के समय से लेकर फसल के परिपक्व होने तक 4-5 बार सिंचाई पर्याप्त होती है। यदि पानी की कमी हो, तो चार बार सिंचाई भी पर्याप्त हो सकती है। पहली सिंचाई बुवाई के समय, दूसरी बुवाई के 25-30 दिनों बाद, तीसरी फूल आने के दौरान, और चौथी फली बनने के समय की जानी चाहिए। अगर पानी उपलब्ध है, तो एक पांचवीं सिंचाई दाना पकते समय, यानी 100-110 दिनों के बाद फसल को लाभ पहुंचा सकती है। इसके लिए फव्वारा विधि उपयुक्त मानी जाती है, क्योंकि यह पानी की खपत को कम कर समान रूप से फसल को पानी प्रदान करती है, जिससे दाने अच्छे आकार के होते हैं।
सरसों की फसल पर कीटों का प्रभाव भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। इनमें पेन्टेड बग और आरा मक्खी, जो अंकुरण के 7-10 दिनों में अधिक प्रभावी होते हैं, खासतौर पर हानिकारक होते हैं। इन कीटों के प्रकोप को रोकने के लिए एंडोसल्फान 4% या मिथाइल पैराथियोन 2% का छिड़काव आवश्यक होता है। इसके अलावा, फूल आने के बाद नमी के मौसम में मोयला कीट का प्रभाव भी बढ़ सकता है। इससे बचाव के लिए फास्फोमीडोन 85 डब्ल्यूसी, इमिडाक्लोप्रिड, या मैलाथियोन 50 ईसी के घोल का छिड़काव एक सप्ताह के अंतराल पर दो बार किया जा सकता है, जिससे कीट का असर कम होता है और फसल सुरक्षित रहती है।
इन उपायों के साथ, किसानों को सलाह दी जाती है कि वे फसल की नियमित देखभाल करते हुए समय-समय पर विशेषज्ञों के अनुसार सिंचाई और कीट नियंत्रण प्रबंधन करें ताकि सरसों की अच्छी उपज प्राप्त हो सके।