खेती-किसानी

भारत में नकली बीज बन रहे किसानों की बड़ी चुनौती, फसल बर्बाद और खाद्य सुरक्षा पर भी खतरा

नई दिल्ली: भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां आज भी देश की बड़ी आबादी की आजीविका खेती पर निर्भर है। किसानों की मेहनत ही देश की खाद्य सुरक्षा की नींव है, लेकिन आज यह नींव एक गंभीर खतरे से जूझ रही है। बाजारों में नकली बीजों की बढ़ती समस्या ने किसानों की पूंजी, समय और श्रम—तीनों को जोखिम में डाल दिया है। इन नकली बीजों से न सिर्फ किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है, बल्कि देश की कृषि प्रणाली, पर्यावरण और खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ रही है। पिछले कुछ वर्षों में देश के कई राज्यों से नकली बीजों की बिक्री की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। किसानों को अच्छे उत्पादन की उम्मीद में ऐसे बीज थमा दिए जाते हैं, जिनमें न अंकुरण की क्षमता होती है और न ही रोगों से लड़ने की ताकत। नतीजा यह होता है कि खेत सूने रह जाते हैं, मेहनत और पैसा बर्बाद हो जाता है।

नकली बीज: दिखते असली, नुकसान घातक

नकली बीज देखने में बिल्कुल असली और प्रमाणित बीज जैसे लगते हैं। कई बार तो पैकेजिंग भी ब्रांडेड कंपनियों जैसी होती है। लेकिन जब इन्हें खेत में बोया जाता है, तो न अंकुरण होता है और न ही उत्पादन आता है। ये बीज भारतीय बीज अधिनियम, 1966 में तय मानकों पर खरे नहीं उतरते। इनमें अंकुरण दर बेहद कम होती है और पौधे अगर उग भी जाएं, तो कमजोर, बीमार और कम उत्पादन देने वाले होते हैं।

नकली बीजों से चौतरफा नुकसान

किसानों की सालभर की मेहनत और पूंजी नकली बीजों की वजह से पूरी तरह डूब जाती है। जब फसल ही नहीं होती, तो न केवल आय का स्रोत खत्म हो जाता है, बल्कि उन्हें दोबारा बुआई के लिए कर्ज और श्रम का दोहरा भार उठाना पड़ता है। कुछ मामलों में तो किसानों को मानसिक तनाव का भी सामना करना पड़ता है। नकली बीजों से पैदा होने वाले पौधे कीटों और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, जिससे किसानों को कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक इस्तेमाल करना पड़ता है। इसका असर सिर्फ मिट्टी की सेहत पर ही नहीं, बल्कि पानी और वातावरण की गुणवत्ता पर भी पड़ता है। लंबे समय में इसका असर मानव स्वास्थ्य पर भी दिखाई देता है।

कैसे फैलता है नकली बीज का जाल?

नकली बीजों का कारोबार अब एक संगठित अपराध का रूप ले चुका है। यह खेल अधिकतर असंगठित मंडियों और अवैध दुकानों में चलता है, जहां असामाजिक तत्व किसानों को कम दाम में अच्छी उपज का लालच देकर नकली बीज बेचते हैं। कई बार असली कंपनियों की नकल कर नकली पैकेट तैयार किए जाते हैं, जिससे किसान धोखे में आ जाते हैं।

समाधान: जागरूकता और सतर्कता

किसानों को इस संकट से बचाने के लिए सबसे अहम है जागरूकता। कृषि विभाग, कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और स्थानीय प्रशासन को किसानों को नकली बीजों की पहचान और उनसे बचाव के उपायों के बारे में समय-समय पर जानकारी देनी चाहिए। पंचायत स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।

किसानों को केवल प्रमाणित बीज ही खरीदने चाहिए और खरीद के समय ‘Certified Seed’ का लेबल, अंकुरण दर, वैधता तिथि और लाइसेंस नंबर की जांच करनी चाहिए। अधिकृत विक्रेताओं या सरकारी बीज निगमों से बीज खरीदने पर गुणवत्ता की गारंटी रहती है और शिकायत की स्थिति में समाधान की संभावना भी बनी रहती है।

बुआई से पहले बीज का अंकुरण परीक्षण भी एक जरूरी कदम है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बीज खेत में कितनी उपज देगा। इसके अलावा सरकार द्वारा शुरू किए गए पोर्टल जैसे ‘ई-नाम’, ‘आई-कृषि पोर्टल’ और ‘बीज निगरानी प्रणाली’ के माध्यम से भी किसान प्रमाणित बीजों की जानकारी ले सकते हैं। यदि किसी को नकली बीज बेचने वालों की जानकारी मिलती है, तो इसकी शिकायत तुरंत कृषि विभाग या पुलिस से करनी चाहिए। बीज अधिनियम के तहत नकली बीज बेचने वालों पर सख्त कार्रवाई का प्रावधान है।

खाद्य सुरक्षा पर भी खतरा

नकली बीजों से सिर्फ एक किसान की फसल ही नहीं खराब होती, बल्कि इसका असर देश की समग्र खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ता है। जब उत्पादन घटता है तो खाद्य आपूर्ति प्रभावित होती है और मूल्य असंतुलन पैदा होता है। इसका सीधा असर आम जनता तक पहुंचता है। देश की कृषि को बचाने के लिए जरूरी है कि नकली बीजों के खिलाफ एक मजबूत और संगठित लड़ाई लड़ी जाए। इसमें सरकार, प्रशासन और किसान—सभी की साझी भागीदारी होनी चाहिए। यदि किसान सजग रहें, प्रमाणित बीजों का ही चयन करें और संदिग्ध स्रोतों से दूरी बनाए रखें, तो वे अपनी फसल, मेहनत और भविष्य दोनों को सुरक्षित रख सकते हैं। नकली बीजों पर रोक लगाने के लिए अब सिर्फ नियमों से नहीं, बल्कि ज़मीन पर सख्त कार्यवाही की जरूरत है।

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