बिहार के जिलों में धान की खेती की परंपरा पुरानी है और पश्चिम चंपारण उन ज़िलों में प्रमुख है, जहां धान बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। इन दिनों यहां के किसान अपने खेतों में धान की नर्सरी तैयार करने में जुटे हुए हैं। किसान अंकुरित किए गए धान के बीजों को पानी से भरे खेतों में छिड़क रहे हैं, ताकि करीब एक महीने में पौधे रोपाई के लिए तैयार हो सकें। ये प्रक्रिया खरीफ सीजन की शुरुआत मानी जाती है, जिसकी सफलता काफी हद तक शुरुआती सावधानियों पर निर्भर करती है।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, धान की बुआई से पहले बीजों का उचित रसायन से उपचार करना बेहद जरूरी है। यदि बिना उपचार के बीज सीधे नर्सरी में छिड़के जाएं, तो वे फफूंद, सड़न या बीज जनित बीमारियों से प्रभावित हो सकते हैं, जिससे पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है और उत्पादन घट सकता है। यही वजह है कि बीजों को अंकुरित करने से पहले उन्हें कवकनाशी रसायन से सुरक्षित किया जाना चाहिए।
माधोपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह का कहना है कि प्रति एक किलो बीज पर दो ग्राम कार्बेन्डाजिम का उपयोग करने से बीज जनित रोगों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यदि शुद्ध कार्बेन्डाजिम उपलब्ध नहीं है, तो किसान इसके मैंकोजेब मिश्रण वाले विकल्प का भी उपयोग कर सकते हैं। उपचार के बाद बीजों को कुछ घंटों के लिए छोड़ देना चाहिए, ताकि रसायन अच्छी तरह से उनमें समा सके।
पौधों को नर्सरी से मुख्य खेत में ले जाने से पहले खेत की मिट्टी की जांच भी आवश्यक मानी जाती है। इससे मिट्टी में मौजूद रोगजनक जीवाणुओं और फफूंद की पहचान हो सकती है, जिनके समय पर उपचार से फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि रोगमुक्त मिट्टी पौधों की अच्छी वृद्धि को सुनिश्चित करती है, जिससे पैदावार बढ़ती है और किसानों को बेहतर मुनाफा मिलता है।
पश्चिम चंपारण के किसान अब धीरे-धीरे वैज्ञानिक विधियों को अपनाने लगे हैं। नर्सरी की तैयारी के दौरान बीज उपचार और मिट्टी जांच जैसे कदम खेती को सुरक्षित, टिकाऊ और लाभकारी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। यदि इन उपायों को समय पर अपनाया जाए तो धान की पैदावार में उल्लेखनीय बढ़ोतरी संभव है, जो न सिर्फ किसानों की आमदनी बढ़ाएगा बल्कि राज्य की खाद्य सुरक्षा को भी मजबूत करेगा।