आज कल काफी किसानों का झुकाव पारंपरिक फसलों से इतर व्यावसायिक फसलों की ओर हुआ है। क्योंकि इनमें अधिक मुनाफा है। अगर आप भी कृषि के जरिये कम समय में अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं तो रबी और खरीब सीजन के दौरान तिल की बुवाई कर सकते हैं। यह फसल 85 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है। ऐसे में तिल बेचकर आप अच्छी कमाई कर सकते हैं। यही वजह है कि कृषि वैज्ञानिक भी तिल की फसल को दोहरी फसल प्रणाली मान रहे हैं। तिल की खेति के साथ एक अच्छी बात यह भी है कि इसे नीलगाय खाना पसंद नहीं करती हैं। ऐसे में, फसल की बर्बादी का डर नहीं होता है। वैज्ञानिकों की मानें तो तिल की खेती में पानी की बहुत कम जरूरत पड़ती है। ऐसे में, तिल की खेती में पानी की बचत तो होती ही है, साथ ही साथ सिंचाई पर आने वाली लागत भी कम हो जाती है।
किसान उपजाऊ जमीन पर तो तिल की खेती कर ही सकते हैं, लेकिन जिन स्थानों पर सिंचाई की समस्या है, या जहाँ जंगली घास अधिक उगते हों, वहाँ भी तिल की खेती की जा सकती है। जुलाई का महिना तिल की खेती के सबसे उपयुक्त समय है। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी ज्यादा उपयुक्त मानी गई है। जहाँ तक तापमान का सवाल है तो तिल की खेती के लिए उच्च तापमान की जरुरत होती है। 25 से 35 डिग्री के तापमान में यह फसल तेजी से विकास करती है। अगर तापमान 40 डिग्री से अधिक चला जाता है तो गर्म हवाएं तिल में तेल की मात्रा को कम कर देती है। इसी प्रकार यदि तापमान 15 डिग्री से कम होता है तो भी तिल की फसल को नुकसान पहुंचता है।
तिल की फसल को रोग व कीटों से बचाने के लिए समय-समय पर उपचार भी करना चाहिए। तिल की खेती में जीवाणु अंगमारी, तना और जड़ सड़न रोग का प्रकोप होने पर फसल को नुकसान पहुंचता है। जीवाणु अंगमारी रोग में पत्तियों पर जल कण जैसे छोटे बिखरे हुए धब्बे धीरे-धीरे बढ़कर भूरे हो जाते हैं। यह बीमारी चार से छह पत्तियों की अवस्था में देखने को मिलती हैं। इस बीमारी का प्रकोप शुरू होने पर स्ट्रेप्टोसाक्लिन चार ग्राम को 150 लीटर पानी में घोलकर पत्तियों पर छिड़काव करना चाहिए, इससे फसल को सुरक्षा मिलती है। 15 दिन के अंतराल में दो बार छिड़काव करने की सलाह दी जाती है। तना और जड़ सड़न रोग का प्रकोप होने पर पौधे सूखने लगते हैं और तना ऊपर से नीचे की ओर सड़ने लगता है, इस रोग की रोकथाम के लिए बीजोपचार जरूरी है।
तिल की फसल बुवाई के 80 से 90 दिनों बाद तैयार हो जाती है। तिल की फसल की कटाई का सही समय तब होता है जब इसकी 75 प्रतिशत पत्तियां और तने पीले हो जाएँ। अगर आप एक हेक्टेयर क्षेत्र में तिल की खेती करते हैं, तो आपको 6 से 7 क्विंटल उपज मिल सकती है।