कृषि पिटारा

एलोवेरा की खेती से किसानों को मिल सकता है अच्छा मुनाफा, जानें इसके लाभ और खेती के महत्वपूर्ण पहलू

नई दिल्ली: मौजूदा समय में आयुर्वेदिक और इम्युनिटी बढ़ाने वाले उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इनमें एलोवेरा का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। चाहे बात हो कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स की या आयुर्वेदिक दवाइयों की, एलोवेरा का उपयोग दोनों में काफी अधिक किया जाता है। यही वजह है कि इसके उत्पादों की बाजार में हमेशा डिमांड बनी रहती है। एलोवेरा को घृतकुमारी और ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है।

एलोवेरा की खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप एक बार पौधे लगाकर कई सालों तक इससे उपज ले सकते हैं और मुनाफा कमा सकते हैं। यह विशेष रूप से आयुर्वेदिक उत्पादों, स्किन केयर प्रोडक्ट्स और इम्युनिटी बढ़ाने वाले उत्पादों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में इस पौधे की खेती मुख्य रूप से पंजाब, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, उड़ीसा, राजस्थान और उत्तराखंड जैसे राज्यों में की जाती है।

हालांकि, कोई भी फसल उगाने से पहले उसकी सही जानकारी होना बेहद जरूरी है। इसके बिना किसानों को फायदे की बजाय नुकसान का सामना भी करना पड़ सकता है। इस लेख में हम आपको एलोवेरा की उन्नत किस्मों, मिट्टी, जलवायु, बुवाई और कटाई के समय के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।

एलोवेरा की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव

एलोवेरा की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, पहाड़ी और बलुई दोमट मिट्टी भी इस पौधे के लिए उपयुक्त होती है। खेत की अच्छी तैयारी के बिना इस पौधे की खेती नहीं करनी चाहिए। एलोवेरा की जड़ें लगभग 20-30 सेंटीमीटर गहराई तक होती हैं, और इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 8.5 तक होना चाहिए।

एलोवेरा के पौधे कब लगाएं?

अच्छी पैदावार के लिए एलोवेरा के पौधों की बुवाई का सही समय जुलाई-अगस्त का होता है। यह पौधा सर्दियों को छोड़कर पूरे साल में लगाया जा सकता है। लेकिन पौधे खरीदते समय यह ध्यान रखें कि पौधा स्वस्थ हो और 4 महीने पुराना हो, जिसमें 4 से 5 पत्तियां हो। रोपाई के दौरान पौधों के बीच 40-45 सेंटीमीटर की दूरी जरूर रखें, ताकि पत्तियों के तैयार होने पर उन्हें आसानी से तोड़ा जा सके।

एलोवेरा की खेत में सिंचाई

सिंचाई की आवश्यकता मौसम के आधार पर बदलती है। बरसात और ठंडे मौसम में एलोवेरा के पौधों को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन गर्मियों में 15 दिन में एक बार सिंचाई की जानी चाहिए। पानी की अधिकता से पौधे सड़ सकते हैं, इसलिए सिंचाई पर ध्यान देना बेहद जरूरी है।

एलोवेरा की कटाई और पैदावार

एलोवेरा के पौधे 8-10 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। यदि भूमि कम उपजाऊ हो तो पौधों को तैयार होने में 10-12 महीने लग सकते हैं। पहली कटाई के बाद, इसके पौधे 2 महीने बाद दूसरी बार कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। एक एकड़ खेत में 11,000 से अधिक पौधे लगाए जा सकते हैं और एक एकड़ से 20 से 25 टन की पैदावार प्राप्त हो सकती है।

एलोवेरा की उन्नत किस्में

एलोवेरा की लगभग 150 प्रजातियां हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख किस्में हैं:एलो बार्बेडेंसिस, ए. चिनेंसिस, ए. परफोलियाटा, ए. वल्गारिस, ए. इंडिका, ए. लिटोरेलिस और ए. एबिसिनिका इत्यादि।

इनमें से अधिकतर किस्मों में चिकित्सीय गुण पाए जाते हैं और इनका इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयों, स्किनकेयर प्रोडक्ट्स, और अन्य स्वास्थ्य संबंधी उत्पादों में किया जाता है। इसके अलावा, सीमैप, लखनऊ द्वारा भी एक उन्नत किस्म अंकचा/एएल-1 विकसित की गई है, जिसे व्यावसायिक खेती के लिए उपयोग किया जा सकता है।

एलोवेरा की खेती से किसानों को न केवल एक पौष्टिक और आयुर्वेदिक उत्पाद मिलता है, बल्कि यह एक लाभकारी व्यवसाय भी साबित हो सकता है। इसके पौधों को लगाकर किसान कई वर्षों तक मुनाफा कमा सकते हैं। सही समय पर उचित तकनीक से बुवाई, सिंचाई, और कटाई करने से यह फसल किसानों के लिए लाभ का स्रोत बन सकती है। साथ ही, इसकी उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी लेकर किसान और भी अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।

ऐसे में, अगर आप भी एलोवेरा की खेती करने का विचार कर रहे हैं, तो इस फसल के बारे में सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सही निर्णय लें और बेहतर लाभ प्राप्त करें।

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