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गेहूँ की इन प्रजातियों से किसान पा सकते हैं अधिक पैदावार

नई दिल्ली: भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान ने गेहूँ की तीन नई किस्में डीबीडब्ल्यू-296,  डीबीडब्ल्यू-327  और डीबीडब्ल्यू-332 विकसित की हैं। इन किस्मों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अच्छी है। इनपर बीमारियों का कम आक्रमण होने की वजह से किसानों द्वारा कीटनाशकों के मद में किए जाने वाले खर्चे में कटौती होगी। ये तीनों ही किस्में गेहूँ के एक प्रमुख रोग पीला रतुआ की प्रतिरोधी हैं।

भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान के मुताबिक ये सभी किस्में मैदानी क्षेत्रों में विशेष रूप से हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सर्वश्रेष्ठ परिणाम दे सकती हैं। इन किस्मों पर शोध के दौरान पहाड़ी राज्यों उत्तराखंड व जम्मू-कश्मीर में भी इनके अच्छे परिणाम सामने आए हैं।

डीबीडब्ल्यू-296 किस्म में गर्मी को सहन करने की अच्छी क्षमता देखने को मिली है। यह किस्म बिस्कुट बनाने के लिए बहुत अच्छी मानी गई है। इसकी एक अन्य प्रमुख विशेषता यह है कि यह कम पानी में भी अच्छी पैदावार दे सकती है। उत्पादन के मामले में यह प्रति हैक्टेयर 56.1 क्विंटल से लेकर 83.3 क्विंटल तक पैदावार देने में सक्षम है।

इसी तरह डीबीडब्ल्यू-332 किस्म बहुत ही पौष्टिक है। इसमें प्रोटीन की मात्रा 12.2 पीपीएम जबकि आयरन 39.9 पीपीएम तक है। इसका प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 78.3 क्विंटल से लेकर 83 क्विंटल तक अपेक्षित है।

संस्थान द्वारा विकसित गेहूँ की तीसरी किस्म डीबीडब्ल्यू-327 अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता व उच्च उत्पादन दर की वजह से गेहूँ की खेती करने वाले किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है। यह किस्म चपाती के लिए बहुत अच्छी मानी गई है। पोषक तत्वों से भरपूर इस किस्म में आयरन की मात्रा 39.4 पीपीएम तथा जिंक की मात्रा 40.6 पीपीएम है। यह किस्म भी पीला रतुआ रोधी मानी गई है। इससे प्रति हैक्टेयर औसतन 79.4 क्विंटल से लेकर 87.7 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

जहाँ तक किसी भी नई किस्म की प्रमाणिकता का सवाल है तो इस बारे में भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि, “हमारे यहां गेहूँ या जौ की किस्मों को रिलीज करने से पहले प्रयोगशाला में जो अध्ययन किया जाता है वह अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों को ध्यान रखकर होता है। आधुनिक लैब में गेहूँ या जौ की वैरायटी की टेस्टिंग पूरी होने के बाद ही उसे अनुमोदन के लिए प्रस्तावित किया जाता है।”

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